मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के आगमन के साथ ही राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। हाल में बाबा सिद्दीकी हत्या मामले में पुलिस कार्रवाई के बीच महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार की रणनीतियों को लेकर चर्चा का माहौल गर्म है। MVA ने लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जातिगत समीकरण, धार्मिक ध्रुवीकरण और वोटिंग पैटर्न के आधार पर नई नीतियों को आकार देना शुरू कर दिया है।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि महाविकास अघाड़ी आगामी विधानसभा चुनाव में किसी मुस्लिम चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने पर विचार कर रही है। ऐसा करने के पीछे की रणनीति धार्मिक ध्रुवीकरण का लाभ उठाना है। पिछले लोकसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं ने महाविकास अघाड़ी के पक्ष में भरपूर समर्थन दिया था। खासकर धुले, पूर्वोत्तर मुंबई और उत्तर मध्य मुंबई जैसे क्षेत्रों में, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक मतदाताओं ने महायुति के खिलाफ मतदान किया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय का भाजपा के प्रति झुकाव नहीं होने के कारण, महाविकास अघाड़ी ने इस समूह को अपनी रणनीति का केंद्र बनाया है। इसका एक उदाहरण हाल के हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में देखने को मिला, जहां मुस्लिम मतदाताओं ने भी विपक्षी गठबंधन के प्रति अपना समर्थन जारी रखा। महाविकास अघाड़ी यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है कि उनका असली वोटर समूह, जो आमतौर पर AIMIM या वंचित बहुजन अघाड़ी में स्थानांतरित हो सकता है, उनके साथ बना रहे। उधर, उद्धव ठाकरे ने वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध किया है, जो आगामी चुनावों में उनकी इसी नीति को दर्शाता है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि ध्रुवीकरण की राजनीति जारी रहेगी, हालांकि कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। भाजपा के नेता अमित मालवीय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि "कांग्रेस नई मुस्लिम लीग बन गई है। हिंदुओं का कांग्रेस में और कांग्रेस के साथ कोई भविष्य नहीं है।"
कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री असलम शेख ने विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय के लिए 20 प्रतिशत सीटों और डिप्टी सीएम के पद की मांग की है। महाराष्ट्र ने केवल एक बार 1980 में अब्दुल रहमान अंतुले के रूप में मुस्लिम मुख्यमंत्री देखा है, जो कांग्रेस पार्टी से थे। महाराष्ट्र में लगभग 11.54 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, जो बड़े पैमाने पर कांग्रेस के गठबंधन का समर्थन करते हैं। ऐसे में महाविकास अघाड़ी इस समुदाय को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, ताकि इस बार भी उनके वोट एकमुश्त मिल सकें। अगर महाविकास अघाड़ी इस समुदाय को संगठित करने में सफल होती है और जातियों में विभाजित करने के बाद कुछ प्रतिशत हिंदू वोट भी प्राप्त कर लेती है, तो सत्ता की चाबी उनके हाथों में आ सकती है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारी में महाविकास अघाड़ी की रणनीतियाँ जातिगत समीकरण और धार्मिक ध्रुवीकरण पर आधारित हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। जबकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका इस बार और भी महत्वपूर्ण हो सकती है। चुनावों में धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति एक बार फिर से प्रमुखता से देखने को मिलेगी, और इससे राजनीतिक परिदृश्य में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
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