नई दिल्ली: अयोध्या रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की 27वें दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा है कि 1949 के मुकदमे के बाद सभी गवाह सामने आए, किन्तु लोग रैलिंग तक क्यों जाते थे इस संबंध में किसी को नहीं पता. गवाहों ने अदालत में कहा कि हिन्दू-मुस्लिम दोनों उस जगह पर पूजा करते थे, मैंने किसी पुस्तक में यह नहीं पढ़ा कि वह कब से एक साथ पूजा कर रहे थे, दोनों वहां पर औरंगजेब के दौर से जाते थे. धवन ने एक हिंदु पक्ष के गवाह की गवाही के संबंध में बताते हुए कहा कि गर्भगृह में 1939 में वहां पर प्रतिमा नहीं थी, वहां पर बस एक फोटो थी.
धवन ने कहा कि प्रतिमा और गर्भगृह की पूजा का कोई सबूत नहीं है. न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि यह कहना उचित नहीं है कि हिंदुओं ने गर्भगृह की पूजा की, इस बात का सबूत नहीं है. इस पर अदालत ने धवन से कहा कि राम सूरत तिवारी नामक गवाह ने 1935 से 2002 तक उस जगह पर पूजा करने की बात कही है, आप सबूतों को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत कर रहे हैं. कोई भी सबूतों को तोड़ मरोड़ नहीं सकता. इस पर धवन ने जवाब देते हुए कहा कि मैं सबूतों को तोड़-मरोड़ नहीं रहा हूं.
इस बीच राजीव धवन ने सवाल कर रहे जज के लहज़े को आक्रामक कहा, हालांकि, बाद में उन्होंने इसके लिए माफी भी मांगी. दरअसल, न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने 1935 में इमारत के भीतर प्रतिमा देखने का दावा करने वाले गवाह पर सवाल किया था. धवन का कहना था कि अविश्वसनीय बयान पर चर्चा नहीं की जानी चाहिए. वहीं न्यायाधीश का कहना था कि चर्चा हर बात की हो सकती है. बात को देखना कैसे है, यह अदालत का काम है. इस पर धवन ने जस्टिस से कहा कि आपका लहज़ा आक्रामक है. मैं इससे डर गया. धवन के रवैये पर बेंच के सदस्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और वकील वैद्यनाथन ने एतराज़ जताया. जिसके बाद धवन ने तुरंत अदालत से माफी मांगी.
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