नई दिल्ली: मुस्लिम महिलाओं के तलाक का मामला एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय की चौखट पर पहुंच चुका है। ताजा मामला तलाक-ए हसन से संबंधित है, जिसे खत्म करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। हालांकि, अदालत ने इस याचिका पर जल्द सुनवाई से फिलहाल इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने इस याचिका को अगले सप्ताह मेंशन करने के लिए कहा है।
याचिकाकर्ता मुस्लिम महिला बेनजरी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने शीर्ष अदालत को बताया कि इसी साल 19 अप्रैल को पीड़िता के पति ने तलाक-ए हसन के तहत उसे पहला नोटिस भेजा था। इसके बाद पति द्वारा महिला को 20 मई को दूसरा नोटिस भेजा गया। पिंकी आनंद ने कहा कि यदि कोर्ट ने दखल नहीं दिया तो इस्लामी उसूलों के अनुसार, 20 जून तक इस महिला का तलाक मान लिया जाएगा। लिहाजा शीर्ष अदालत इस पर जल्द सुनवाई करे।
बेंच की अगुआई कर रहे न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा कि 19 अप्रैल को पहला नोटिस जारी किया गया था, मगर आपने दूसरे नोटिस तक इंतजार किया, हम मामले पर अदालत खुलने के बाद सुनवाई करेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि तलाक-ए हसन को चुनौती देने वाली महिला की याचिका पर जल्द सुनवाई की आवश्यकता नहीं है।
क्या है तलाक-ए-हसन?
तलाक-ए-अहसन मुस्लिमों में तलाक की सर्वाधिक मान्य प्रक्रिया है। इसमें कोई भी शख्स अपनी पत्नी को एक बार तलाक देता है, किन्तु वह पत्नी को छोड़ता नहीं है। पत्नी, शौहर के साथ ही रहती है। यदि तीन महीने के अंतराल में दोनों के बीच सुलह नहीं होती है, तो तीन महीने की इद्दत अवधि पूरी होने के बाद तलाक प्रभावी हो जाता है और दोनों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता ख़त्म हो जाता है। तलाक-ए-हसन में पति अपनी पत्नी को एक-एक माह के अंतराल पर तलाक देता है, इस बीच यदि दोनों में रिश्ता नहीं बना या सुलह नहीं हुई तो तीसरे महीने तीसरी बार तलाक कहने पर उनका रिश्ता समाप्त हो जाता है। इसमें तलाक प्रति माह के अंतराल पर कहा जाता है।
क्या होता है तलाक-ए-अहसन?
वहीं, तलाक-ए-अहसन में शौहर जब एक बार ही बीवी को तलाक कह दे, तो वो तलाक मान लिया जाता है। इसके बाद इद्दत का समय शुरू हो जाता है और यह समय 90 दिन का होता है। बताया जाता है कि इस दौरान पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर सकते। यदि इन 90 दिनों के दौरान पति-पत्नी संबंध बना लेते हैं, तो तलाक अपने आप रद्द हो जाता है। यानी तलाक-ए-अहसन को घर में ही ख़त्म किया जा सकता है।
ट्रिपल तलाक़ कानून में कौनसा तलाक़ है असंवैधानिक?
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक ही बार में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। मगर, तलाक के दूसरे तरीके अभी भी वैध हैं और वे पहले की तरह ही लागू हैं। तीन तलाक को तलाक ए बिद्दत कहा जाता है। इसे सबसे सामान्य तरीका माना जाता है। इसमें पति एक बार में तीन बार 'तलाक' कहकर बीवी को तलाक दे देता है। इसके बाद शादी फ़ौरन टूट जाती है। इस तलाक़ को वापस नहीं लिया जा सकता।
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