नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति की एक बैठक आज संसद भवन एनेक्सी में हुई। इस बैठक में वक्फ प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए प्रस्तावित कानून के समर्थन में मुस्लिम महिला समूह ने अपनी आवाज उठाई। यह पहली बार था जब किसी महिला समूह को संयुक्त संसदीय समिति द्वारा आमंत्रित किया गया। शालिनी अली के नेतृत्व में मुस्लिम महिला बौद्धिक समूह ने इस विधेयक पर अपने विचार और सुझाव साझा किए।
महिला बुद्धिजीवियों के समूह ने वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि बोर्ड का सामाजिक कल्याण में कोई ठोस योगदान नहीं है और इसमें सिर्फ कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों का नियंत्रण है। उन्होंने बोर्ड से अनुरोध किया कि वह अनाथों, विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं के लिए दी जाने वाली सहायता के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करे। इसके अलावा, उन्होंने भू-माफियाओं के खिलाफ उठाए गए कदमों की जानकारी भी मांगी। इसके अलावा, जमीयत हिमायतुल इस्लाम के कारी अबरार जमाल ने भी समिति के समक्ष अपनी बात रखी। उन्होंने वक्फ बोर्ड के सामाजिक कल्याण में योगदान और उसके अधिकारियों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। उन्होंने सुझाव दिया कि मुतवल्लियों की भूमिका को सीमित किया जाना चाहिए और कलेक्टर को वक्फ मामलों की निगरानी करनी चाहिए।
बैठक में मौलाना कोकब मुज्तबा के नेतृत्व में शिया मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि 1954 में वक्फ अधिनियम के पारित होने के बाद से औकाफ को कमजोर किया गया है और उन्होंने वक्फ बोर्ड से पंजीकृत औकाफ की स्थिति के बारे में रिपोर्ट मांगी। मुज्तबा ने सरकार से अपील की कि वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को जल्द पारित किया जाए और वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएं। विश्व शांति परिषद के नेतृत्व में फैज अहमद फैज ने भी समिति में अपने विचार रखे। उन्होंने प्रस्तावित विधेयक का समर्थन किया, लेकिन कलेक्टर की भूमिका पर सवाल उठाया। उनका कहना था कि वक्फ मामलों में कलेक्टर की भूमिका सीमित होनी चाहिए और सर्वेक्षण के लिए मुस्लिम अधिकारी को शामिल किया जाना चाहिए।
हालांकि, जमात-ए-इस्लाम-ए-हिंद का एक समूह, जो मलिक मोआतसिम खान के नेतृत्व में था, ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया। उन्होंने मौजूदा कानून को वक्फ मामलों के लिए पर्याप्त बताते हुए नए कानून की आवश्यकता को खारिज किया। खान का कहना था कि वक्फ बोर्ड केवल एक संगठनात्मक ढांचा नहीं है, बल्कि यह आस्था का भी मामला है। इस प्रकार, संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में विभिन्न समूहों और संगठनों द्वारा वक्फ (संशोधन) विधेयक पर अपनी राय व्यक्त की गई, जिसमें उनके समर्थन और विरोध दोनों शामिल थे।
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