'मुस्लिम नहीं हैं अल्पसंख्यक, मौलानाओं की बातें आँख मूँदकर ना माने लोग', ‘हमारे बारह’ पर बॉम्बे HC की टिप्पणी
'मुस्लिम नहीं हैं अल्पसंख्यक, मौलानाओं की बातें आँख मूँदकर ना माने लोग', ‘हमारे बारह’ पर बॉम्बे HC की टिप्पणी
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‘हमारे बारह’ फिल्म को लेकर उठे विवाद पर बॉम्बे उच्च न्यायालय में पीठ ने सुनवाई करते हुए कुछ टिप्पणी की हैं। अदालत ने कहा है कि ‘हमारे बारह’ फिल्म उन्होंने देखी तथा उन्हें इस फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा। फिल्म का उद्देश्य वास्तव में महिलाओं का उत्थान है। जस्टिस बीपी कोलाबावाला एवं फिरदौस पूनीवाला की खंडपीठ ने कहा कि फिल्म का पहला ट्रेलर आपत्तिजनक था, किन्तु उन्होंने (निर्माताओं ने) उसे हटा दिया तथा साथ ही फिल्म से आपत्तिजनक सीन भी हटा दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि ये एक ऐसी फिल्म है जिसे देख विचार किया जाए, न कि ऐसी फिल्म है जिसे लेकर दर्शकों से अपेक्षा की जाए कि वो अपना दिमाग घर पर रखकर इसे देखें।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस फिल्म में मौलाना को कुरान की गलत व्याख्या करते दिखाया गया, तथा एक मुस्लिम व्यक्ति उसी दृश्य पर आपत्ति जताता है. लोगों से यही अपेक्षा की जाती है कि लोगों को अपने दिमाग का उपयोग करना चाहिए और ऐसे मौलानाओं की बातें आँख मूँदकर नहीं माननी चाहिए। अदालत ने कहा कि उन्हें फिल्म देखकर नहीं लगा कि कोई ऐसी चीज है इसमें जो हिंसा भड़काने वाली है। यदि लगता, तो पहले ही इस पर आपत्ति जता देते। भारत की जनता इतनी भोली या मूर्ख नहीं है कि उसे ये सब समझ न आए। मामले की सुनवाई के चलते अदालत ने यह भी गौर किया कि फिल्म मेकर्स ने सेंसर बोर्ड से प्रमाण पत्र पाने के पहले ही फिल्म का ट्रेलर रिलीज कर दिया था, इसलिए कोर्ट ने उनपर जुर्माना लगाया। साथ ही कहा कि ट्रेलर रिलीज करके उल्लंघन तो किया गया है इसलिए याचिकाकर्ता की पसंद की चैरिटी के अनुसार भुगतान करना होगा। अदालत ने कहा कि बिन प्रमाण पत्र हासिल किए जो ट्रेलर रिलीज किया गया वो थोड़ा परेशान करने वाला था। कोर्ट ने मेकर्स को सावधान रहकर काम करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि रचनात्मक स्वतंत्रता की आड़ में किसी भी मजहब की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले संवाद एवं दृश्य नहीं जोड़े जाने चाहिए।

कोर्ट ने इस पूरी सुनवाई के चलते एक महत्वपूर्ण टिप्पणी यह भी दी कि निर्माओं को सावधान रहना चाहिए कि वो पेश क्या कर रहे हैं। वे किसी भी धर्म को ठेस पहुँचाने का काम नहीं कर सकते हैं। मुस्लिम इस देश का दूसरा सबसे बड़ा मजहब है। ध्यान हो कि कोर्ट द्वारा कि गई यह महत्वपूर्ण टिप्पणी आज के वक़्त में इसलिए भी इतनी आवश्यक है क्योंकि आजकल राजनीति में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बताकर खूब तुष्टिकरण किया जाता है। कभी उनके लिए आरक्षण माँगा जाता है तो कभी उनके लिए अलग से कानून की बातें होती हैं। यदि इन माँगों पर सुनवाई न हो तो कहा जाता है कि देश में तानाशाह आ गया है जो देश के अल्पसंख्यकों को कुचलने एवं दबाने की कोशिश हो रही हैं। हकीकत जबकि यह है कि भारत में मुस्लिमों की संख्या केवल हिंदुओं से कम है, बाकी वो अन्य किसी भी धर्म के मुकाबले अधिक आबादी है. इसलिए उन्हें अल्पसंख्यक बोलना केवल उन लोगों के अधिकार को मारने जैसा है जो हकीकत में इस देश में कम आबादी में हैं एवं मुस्लिमों से अधिक आरक्षण जैसी सुविधाओं की उनको ज्यादा आवश्यकता है।

2011 में हुई जनगणना के मुताबिक, देश के 19.3% अल्पसंख्यकों में से मुसलमानों की जनसंख्या 14.2% है। वहीं ईसाई 2.3%, सिख 1.7%, बौद्ध 0.7%, जैन 0.4% और पारसी 0.006% हैं। इसके अतिरिक्त संख्या की भी बात करें तो पीआईबी पर प्रकाशित जानकारी बताती है कि उस वक़्त मुस्लिमों की संख्या 17 करोड़ 22 लाख 45 हजार 158 के आसपास थी जो आज के वक़्त में कहा जाता है 23-24 करोड़ तक पहुँच गई है। जबकि सिखों की संख्या तब 20 लाख 833 हजार 116 थी, ईसाइयों की 27 लाख 819 हजार 588 थी, जैन की 4,451,753, बौद्धों की 8,442,972 संख्या थी। आँकड़े सामने होने के बाद भी समय-समय पर मुस्लिमों को अल्पसंख्यक कहकर उनके लिए सहानुभूति इकट्ठा करने का काम होता रहा है। 

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