नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनावों की तारीख करीब आते ही राजनीतिक गलियारों में जुबानी जंग तेज हो गई है। इस बार विवाद की जड़ बने हैं बीजेपी नेता रमेश बिधूड़ी, जिन्होंने आम आदमी पार्टी की नेता और दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार आतिशी के पिता पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। रमेश बिधूड़ी ने कहा था, "आतिशी पहले मार्लेना थी, फिर सिंह हो गईं। उन्होंने अपना बाप बदल लिया।" इस बयान के बाद सियासी पारा चढ़ गया है।
बिधूड़ी की टिप्पणी से आहत आतिशी एक सार्वजनिक कार्यक्रम में फुट-फूटकर रोने लगीं। उन्होंने कहा, "मेरे पिताजी 80 साल के हैं। उन्होंने हजारों बच्चों को पढ़ाया है। वे इतने बीमार हैं कि बिना सहारे के चल भी नहीं सकते। रमेश बिधूड़ी अपने काम पर वोट मांगें, मेरे पिता को गाली देकर नहीं। देश की राजनीति किस स्तर पर पहुंच गई है। बिधूड़ी को बताना चाहिए कि उन्होंने 10 साल में लोगों के लिए क्या किया है।"
आतिशी ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी मुद्दों पर बात करना चाहती है, लेकिन बीजेपी व्यक्तिगत हमलों पर उतर आई है। आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "रमेश बिधूड़ी का यह बयान न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि बीजेपी की मानसिकता को भी उजागर करता है। पहले उन्हें संसद में गाली देने वाले नेता के रूप में पहचान मिली और अब एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के पिता को गाली देकर वह अपनी छवि चमकाना चाहते हैं। क्या बीजेपी ऐसे लोगों को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना चाहती है?"
संजय सिंह ने सवाल उठाया, "दिल्ली की जनता को अब तय करना होगा कि उन्हें महिलाओं का सम्मान करने वाला नेतृत्व चाहिए या महिलाओं को गाली देने वाला। अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के लिए योजनाएं दीं, जबकि बीजेपी गाली-गलौज और अपमानजनक भाषा को बढ़ावा दे रही है।"
चुनावों से ठीक पहले इस तरह की बयानबाजी ने एक बार फिर से राजनीति के गिरते स्तर पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिधूड़ी की टिप्पणी के बाद सियासी माहौल गरमा गया है। बीजेपी ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बयान सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए दिया गया है, ताकि असल मुद्दों पर बात न हो सके। दिल्ली में बिजली, पानी, और शिक्षा जैसे मुद्दे चुनावी बहस के केंद्र में होने चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत हमले और गाली-गलौज अब चर्चा का विषय बन गए हैं।
दिल्ली में चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। आम आदमी पार्टी ने जहां अपनी सरकार की उपलब्धियों को सामने रखकर वोट मांगे हैं, वहीं बीजेपी ने विकास और नेतृत्व के नाम पर जनता को लुभाने की कोशिश की है। लेकिन इस बार चुनावी लड़ाई सिर्फ मुद्दों की नहीं, बल्कि नैतिकता और भाषा के स्तर की भी है। अब यह देखना होगा कि दिल्ली की जनता नेताओं की जुबानी जंग से प्रभावित होती है या फिर अपने वोट से असली मुद्दों पर फैसला करती है।