म्यांमार: ह्यूमन राइट्स वॉच ने म्यांमार की सरकार पर रोहिंग्या लोगों पर हुए अत्याचारों के सबूतों को छिपाने के इल्जाम लगाए हैं , उनका कहना है कि, पिछले साल अगस्त में भड़की हिंसा के बाद से कम से कम 55 गांवों को पूरी तरह साफ कर दिया गया है. इस हिंसा के कारण लगभग सात लाख लोग पहले ही भागकर बांग्लादेश चले गए हैं. ह्यूमन राइट्स ने सबूत के तौर पर सैटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरें पेश की हैं , जिसमे वो गाँव जहाँ रोहिंग्या बसते थे, वे पूरी तरह नष्ट हो गए हैं.
उनके अनुसार, अधिकारी अत्याचार के सबूतों को छिपाना चाहते हैं और उन्होंने रोहिंग्या लोगों की जमीनों पर कब्जा कर लिया है. वे कब्रों, इस्तेमाल किए गए हथियारों और उन सभी सबूतों को छिपा रहे हैं जिनसे पता लगाया जा सके कि किसने ये अपराध किए हैं. इससे रोहिंग्या लोगों के सफाए की बर्मी अधिकारियों की मानसिकता पता चलती है.
आपको बता दें कि, रोहिंग्या लोगों को म्यांमार अपना नागरिक नहीं मानता है और न ही उन्हें अपनी नागरिकता देता है. रोहिंग्या लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं जो दशकों से म्यांमार में रह रहे हैं. लेकिन म्यांमार उन्हें बांग्लादेश से आए गैरकानूनी प्रवासी समझता है. पिछले साल भी म्यांमार की सेना ने अपनी कई चौकियों पर हमलों के बाद रोहिंग्या चरमपंथियों के खिलाफ अभियान छेड़ा था.
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