नाग पंचमी का पर्व हर साल मनाया जाता है. ऐसे में इस साल यह पर्व 25 जुलाई को आने वाला है. यह पर्व सावन के महीने में आता है और इसे कई लोग बहुत धूम धाम से मनाते हैं. वैसे बहुत कम लोग जानते हैं कि नागदेवता के साथ इस दिन शिव जी की पूजा करने का विधान भी है. वैसे शिव जी के पुत्र गणेश और कार्तिकेय के बारे में तो आप जानते ही होंगे लेकिन आपने कभी उनकी पांच पुत्रियों में बारे में नहीं सुना होगा. तो आइए आज हम आपको बताते हैं उन पुत्रियों के बारे में जो नागकन्या हैं. जी दरअसल शिव पुराण में उनकी एक पुत्री का जिक्र मिलता है, जिन्हें देवी मनसा के नाम से जाना जाता है, ये नागों की देवी हैं. वहीं मधुश्रावणी में एक कथा मिलती है उसके अनुसार शिव जी की पांच पुत्रियां भी हैं. उनका जन्म गलती से हो गया था या यूँ कह लीजिये कि अनजाने में. आइए जानते हैं उनके बारे में.
शिव जी की कन्याओं से जुड़ी कथा - एक बार माता पार्वती और शिव जी जल क्रीडा कर रहे थे. उसी समय संयोग वश भगवान शिव का वीर्यस्खलन हो गया. भगवान शिव ने अपने वीर्य को एक पत्ते पर रख दिया. उनके वीर्य से पांच कन्याओं का जन्म हुआ. लेकिन ये कन्याएं मनुष्य रूप में नहीं थी. ये नागकन्याएं थीं. भगवान शिव को तो इनके बारे में ज्ञान था. लेकिन माता पार्वती इस बारे में कुछ नहीं जानती थी. भगवान शिव अपने पुत्रों की तरह ही अपनी पुत्रियों को भी प्रेम करते थे. शिव जी अपनी कन्याओं से मिलने के लिए रोज प्रातः काल के समय सरोवर पर जाते थे. जब यही क्रम प्रतिदिन चलने लगा तो माता पार्वती ने सोचा की महादेव प्रतिदिन कहां जाते हैं. माता ने इस रहस्य का पता लगाने का निश्चय किया. एक दिव जब शिव जी प्रातः काल के समय सरोवर पर जाने के लिए निकले तो माता भी चुपचाप उनके पीछे चल दी.
पार्वती जी ने जब देखा की शिव जी तो नागकन्याओं के साथ पिता की तरह खेल रहें हैं. ये देखकर पार्वती जी को क्रोध आ गया. माता ने जैसे ही उन कन्याओं को मारने के लिए अपना पांव उठाया शिव जी ने उन्हें रोक लिया और कहा कि ये आपकी भी पुत्रियां हैं. शिव जी ने माता पार्वती को कन्याओं के जन्म की पूरी कथा बताई. इससे माता का क्रोध शांत हो गया. वैसे हम आपको यह भी बता दें कि शिव जी की यें पांच नाग कन्याएं शामिलबारी, जया, विषहर, देव और दोतलि है. जी दरअसल भगवान शिव ने कहा कि 'जो भी सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन इन नाग कन्याओं की पूजा करेगा, उनके परिवार को सर्पदंश का भय नहीं रहेगा.'
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