द्वितीय विश्व युद्ध का एक अध्याय, जिसे आमतौर पर सेकंड चीन-जापान युद्ध के नाम से जाना जाता है, एक अत्यंत दुखद और भयानक घटना के रूप में स्थापित हो गया। इस युद्ध के दौरान, जापान ने चीन के खिलाफ अत्याचार किए और अनेक निर्दोष नागरिकों की हत्या कर की। यह युद्ध अप्रत्याशित रूप से 1937 से 1945 तक चला, और इसके दौरान अनगिनत अपराधों की घटनाएं हुईं, जो इतिहास के पन्नों पर शर्मनाक धब्बा बनीं।
वर्तमान में जापान विशेष रूप से अपने विज्ञान और तकनीकी नवाचारों के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, एक काल था जब इसे सबसे क्रूर देश के रूप में पहचाना जाता था। उस सबसे भयानक समय में, जापानी सैनिकों ने एक हजार चीनी नागरिकों को जोंगमऊ शहर से बाहर निकालकर उन्हें यैलो नदी में डुबोकर मार डाला था । इसके अलावा , चीन के राष्ट्रीय अभिलेख प्रबंधन के डॉक्युमेंट्स में यह भी दावा किया गया है कि युद्ध के दौरान जापानी सैनिकों ने चीनी नागरिकों का मांस भी पकाकर खाया। यही नहीं, नानजिंग में हुई थी एक वीभत्स घटना हुयी थी , जिसमें 80 हजार महिलाओं का बलात्कार किया गया था।
साल 1937 में वो तारीख थी 13 दिसंबर, जब जापान के सैनिकों ने चीन के नानजिंग शहर पर कत्लेआम शुरू किया। 6 हफ्तों तक चले इस नरसंहार में जापान ने चीन के 3 लाख लोगों को मौत के घाट उतारा। इसमें सैनिक और बड़ी संख्या में आम नागरिक शामिल थे। 80 हजार महिलाओं की इज्जत लूटी गई। उस समय नानजिंग शहर नेशनलिस्ट चाइना की राजधानी हुआ करती थी। जापान के सैनिकों ने कुछ ही दिनों में पूरे शहर को श्मशान घाट बना दिया। इस शहर को इस बर्बरता और जख्मों से उबरने में दशकों वर्ष लग गए। हजारों सैनिकों को मार कर उनको कब्रों में सामूहिक रूप से दफना दिया। उनकी बर्बरता सिर्फ सैनिकों तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने आम लोगों से और भी क्रूरता की। हजारों परिवार के सिर कलम कर दिए गए। यह कत्लेआम करीब 6 हफ्तों तक चला। हमले के बाद महीनों तक शहर की गलियों में लाशों का ढेर पड़ा रहा। जापानी सैनिकों ने कई घरों को आग लगा ली। पूरा शहर श्मशान घाट बन गया।
एक के बाद एक जीत के बाद जापान ने 1941 में पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया, जिसके बाद अमेरिका ने जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।वहीं, सोवियत संघ ने जापान के कब्जे वाले मंचूरिया पर हमला कर दिया। इसके बाद अमेरिका चीन को जापान के खिलाफ युद्ध में मदद पहुंचाने लगा। चीन और जापान के बीच का युद्ध अब तक सेकंड वर्ल्ड वॉर का हिस्सा बन चुका था और जापान कमजोर पड़ने लगा था। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद जापान में 1945 में अपनी हार मान ली और सरेंडर कर दिया।
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