आप सभी को बता दें कि आज यानी 8 मई को नारद जयंती है. आप जानते ही होंगे नारद मुनि को ब्रह्मा जी की मानस संतान माना जाता है और नारद जी भगवान विष्णु के परम भक्त हैं. वहीं उनके बारे में ऐसी मान्यता है कि वे एक जगह टिक कर नहीं बैठते हैं और सदैव भ्रमण करते रहते हैं. जी दरअसल उनकी इस आदत के पीछे एक कथा है. आइए जानते हैं.
नारद मुनि कथा - पौराणिक कथा को माना जाए तो बहुत समय पहले राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति ने 10 हज़ार पुत्रों को जन्म दिया था. इतने पुत्र होने के बाद भी इनमें से किसी ने भी राजपाठ नहीं संभाला. कहा जाता है कि ये सभी नारद जी की संगत में आ गए और नारद जी ने सभी को मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया था. कहते हैं उसके बाद में दक्ष का विवाह पंचजनी से हुआ. जिससे उन्हें एक हजार पुत्र हुए. नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रों को भी सभी प्रकार के मोह माया से दूर रहकर मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया. राजा नारद की इस बात से इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने नारद मुनि को श्राप दे दिया और कहा कि तुम हमेशा इधर-उधर भटकते रहोगे और एक स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं रूक सकोगे. इस श्राप के कारण ही नारद मुनि कभी एक जगह पर नहीं टिकते हैं.
कला और संचार से जुड़े - कहते हैं नारद जी कई कलाओं और शास्त्रों में निपुण थे और उनको इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेद, संगीत, ज्योतिष जैसे अनेक शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान था. इसी के साथ वीणा और खरताल लेकर वे भगवान विष्णु की उपासना करते रहते हैं. जी दरअसल नारद मुनि को भगवान विष्णु का संदेश वाहक माना जाता है और नारद जी को विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त थी. इसी के साथ माता सरस्वती की भी कृपा प्राप्त होने से वे अत्यंत बुद्धिमान और संगीत मर्मज्ञ हैं और सूचनाओं को समय पर आदान प्रदान करने के लिए भी नारद मुनि को पहचाना जाता हैं.