नर्मदा नदी की गणना धरती की सबसे प्राचीन नदियों में होती है। नर्मदा घाटी में करोड़ों वर्ष पुरानी वनस्पति और जंतुओं के जीवाश्म बड़ी संख्या में मिले हैं। करोड़ वर्ष के दौरान जैव-विविधता के यहाँ अनेक रूप समय-समय पर प्रकट हुए और विलुप्त हुए। लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में अनेक भूकंपों और भू-गर्भीय उथल-पुथल के कारण पृथ्वी की सतह पर पिघले हुए गर्म लावा की परतों ने झील और जलाशयों के बीच की वनस्पतियों को भू-चालिक राख से ढँक दिया था। लाखों वर्षों में पाषाणीकरण होने से वृक्षों के तने, फल-फूल, बीज, लताएँ, पत्तियाँ सब ज्यों के त्यों कठोर होकर जीवाश्मों में बदल गये।
नर्मदा कपाल
नर्मदा घाटी में पाये गये जंतु जीवाश्मों में हाथी, घोड़े, दरियाई घोड़ा, जंगली भैंसों के जीवाश्म के साथ सीहोर जिले के हथनौरा गाँव में प्राचीन मानव के कपाल अवशेष भी मिले हैं। हथनौरा में नर्मदा तट पर खुदाई से प्राप्त मानव कपाल का नाम 'नर्मदा कपाल' रखा जाकर इस प्राचीन मानव को वैज्ञानिकों द्वारा नर्मदा मानव का नाम दिया गया है। हथनौरा के पास ही ग्राम धांसी में नर्मदा के उत्तरी तट पर प्राचीनतम विलुप्त हाथी (स्टेगोडॉन) के दोनों दाँत तथा ऊपरी जबड़े का जीवाश्म मिला है। नरसिंहपुर के पास नर्मदा और शेर नदी के संगम के निकट भी प्राचीन पशुओं के अस्थि-जीवाश्म भारी मात्रा में मिले हैं।
डायनासोर के जीवाश्म
जबलपुर के पास नदी तट पर स्टेगोसारस नामक विशालकाय डायनासोर के पीठ के एक काँटे और राजासारस डायनासोर के ऊपरी जबड़े का जीवाश्म मिला है। धार जिले में कुक्षी के निकट लगभग 8 करोड़ साल पुराने सॉरोपोड डायनासोर के 104 अण्डे और दो बड़ी फीमर हड्डियाँ मिलीं। वैज्ञानिक सॉरोपोड का आकार 40 से 90 फीट मानते हैं। नर्मदा घाटी में 1.7 अरब वर्ष से लेकर कुछ हजार साल पहले तक समुद्री, स्वच्छ जलीय एवं थलीय वनस्पतियाँ, समुद्री सीपी-शंख, जमीनी कीड़े-मकोड़ों से लेकर दैत्याकार डायनासोरों तक के जीवाश्म मिले हैं। यहाँ शार्क मछलियों के 5000 से अधिक दँत जीवाश्म भी पाये गये हैं।