हमेशा से इस देश मे अलगाव की बात करने वालों को Z सुरक्षा दी जाती रही, देश के रक्षको को घायल करते पत्थरबाज़ों को सराहा जाता रहा, दुर्दांत दहशतगर्दों के लिए आधी रात अदालतें लगती रहीं, बौद्धों का क़त्ल कर के दूसरे देश से आये कातिलों को बसाया जाता रहा। मगर केवल एक नाम से इतनी चिढ़ बनाये रहे कि 75 वर्ष से उसको ही नफरत का प्रतीक घोषित किये रहे। वो नाम जो भारत के विभाजन से दुखी था, वो नाम जो हमेशा अखण्ड भारत का सपना देखता रहा, यहां तक कि मृत्यु के बाद भी।।। ये बात हो रही है नाथूराम गोडसे की जिनका जन्म आज ही के दिन मतलब 19 मई सन 2010 में हुआ था। कम लोग ही जानते है कि कश्मीर के कुख्यात दहशतगर्दों तक के शव उनके परिवार को दे दिया जाता है जिसमे सेना विरोधी, भारत विरोधी नारे लगते हैं तथा आतंकी उन्हें बन्दूकों की सलामी देते हैं।
मगर नाथूराम गोडसे का शव इन्ही तथाकथित मानवता के ठेकेदारों ने उनके घर वालों को नही दिया था बल्कि वेतमान सरकार के आदेश पर जेल के अफसरों ने घग्घर नदी के किनारे पर उन्हें जला दिया था। जेल में नाथूराम और आप्टे को बी श्रेणी में रखा गया था। नाथूराम कॉफी पीने तथा जासूसी किताबें पढ़ने का शौकीन था। 15 नवंबर 1949 को गोडसे को फांसी दिए जाने से एक दिन पहले परिवार वाले उससे मिलने अंबाला जेल गए थे। गोडसे की भतीजी तथा गोपाल गोडसे की बेटी हिमानी सावरकर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह फांसी से एक दिन पहले अपनी मां के साथ उनसे मिलने अंबाला जेल गई थी।
उस वक़्त वह ढाई वर्ष की थी। गिरफ़्तार होने के पश्चात् गोडसे ने गांधी के पुत्र देवदास गांधी (राजमोहन गांधी के पिता) को तब पहचान लिया था जब वे गोडसे से मिलने थाने पहुंचे थे। इस मुलाकात का जिक्र नाथूराम के भाई तथा सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक गांधी वध क्यों, में किया है। गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक में लिखा है, देवदास शायद इस उम्मीद में आए होंगे कि उन्हें कोई वीभत्स चेहरे वाला, गांधी के खून का प्यासा कातिल दिखाई देगा, मगर नाथूराम सहज और सौम्य थे। उनका आत्मविश्वास बना हुआ था। देवदास ने जैसा सोचा होगा, उससे एकदम उलट थे नाथूराम जिनक चेहरे पर तब भी थी सौम्यता तथा शांति के साथ संतोष के भाव।।। नाथूराम ने देवदास गांधी से कहा, मैं नाथूराम विनायक गोडसे हूं। हिंदी अख़बार हिंदू राष्ट्र का संपादक। मैं भी वहां था (जहां गांधी का क़त्ल हुआ)। आज तुमने अपने पिता को खोया है। मेरे कारण तुम्हें दुख पहुंचा है। तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुंचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है। कृप्या मेरा विश्वास करो, मैंने यह काम किसी निजी रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है तथा ना ही कोई ख़राब भाव।
अदालत पर आज प्रश्न उठाने वालों के वक़्त मे अदालत में नाथूराम गोडसे के दिये बयान पर प्रतिबंध लगा दिया गया जबकि इन्ही लोगों ने मुम्बई ब्लास्ट के अपराधी याकूब के एक एक बयान यहां तक कि नहाने धोने तक कि खबर को जनता के बीच भावनात्मक रूप से पहुचाया।।। गोपाल गोडसे ने अपनी किताब के अनुच्छेद में नाथूराम की वसीयत का जिक्र किया है। जिसकी आखिरी पंक्ति है- “यदि सरकार अदालत में दिए मेरे बयान पर से प्रतिबंध हटा लेती है, ऐसा जब भी हो, मैं तुम्हें उसे प्रकाशित करने के लिए अधिकृत करता हूं। नाथूराम गोडसे के बयानों में ये भी था कि- मेरा प्रथम दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए है, एक देशभक्त और विश्व नागरिक होने के नाते।
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