महात्मा गाँधी के परम अनुयायी माने जाने वाले नाथूराम विनायक गोडसे ने जब महात्मा गाँधी पर एक के बाद एक तीन फायर किए थे, तब पूरा देश नाथूराम के प्रति नफरत से भर उठा था, लेकिन नाथूराम वहां से भागे नहीं और गिरफ्तार कर लिए गए. जिसके बाद उन्हें अदालत में ले जाया गया जहाँ नाथूराम ने अपनी गलती मानते हुए सजा स्वीकार कर ली, साथ ही अदालत में महात्मा गाँधी की हत्या करने का कारण भी बताया.
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अदालत में नाथूराम ने कहा कि वीर सावरकर और गांधीजी ने जो भी लिखा है या कहा है, उसे मैंने गंभीरता से पढ़ा और सुना है. मेरे विचार से, पिछले तीस सालों के दौरान इन दोनों ने भारतीय लोगों के विचार और कार्य पर जितना असर डाला है, उतना किसी और चीज़ ने नहीं डाला. नाथूराम ने कहा कि इनको पढ़ने और सोचने के बाद मेरा यकीन इस बात में हुआ कि मेरा पहला दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए है, लेकिन जब 32 साल तक विचारों को प्रेरणा देने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म कर देना चाहिए.
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नाथूराम ने अदालत में महात्मा गाँधी पर आरोप लगाया था कि महात्मा गाँधी की सहमति की वजह से ही देश का बंटवारा हो सका था. नाथूराम ने महात्मा गाँधी द्वारा रखे गए आखिरी अनशन, जो उन्होंने पाकिस्तान बनने के बाद वहां के मुस्लिमों को धन आवंटन करने के लिए रखा था, को लेकर भी आरोप लगाए थे की वे मुस्लिमों के पक्ष में हैं. इसी विचारधारा ने नाथूराम के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला और उसने महात्मा की हत्या कर दी. हालाँकि अदालत में नाथूराम गोडसे ने कहा था कि मैंने महात्मा गाँधी की हत्या नहीं उनका वध किया है.
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