भारतीय क्रिकेट के शुरुआती दौर में महाराजा ही टीम के कप्तान बनते थे. हालांकि ये बात भारतीय टीमों को काफी भारी भी पड़ती थी. आमतौर पर ये कप्तान न केवल औसत से भी गए गुजरे क्रिकेटर होते थे. भारतीय क्रिकेट टीम जब 1932 में इंग्लैंड गई तो ऐसा ही हुआ. इस टीम के कप्तान और उपकप्तान न केवल राजघराने से थे बल्कि जीजा-साले भी थे.
टीम के कप्तान थे पोरबंदर के महाराजा नटवर सिंहजी भावसिंहजी. उन्होंने अपने साले को उपकप्तान बनवाया. उनके साले केएसजी लिंबडी, गुजरात की ही एक छोटी रियासत के राजकुमार थे.
अजीब बात ये रही कि दोनों में कोई भी उस दौरे में खेल नहीं पाया. कप्तान ने अगर खुद को बाहर बिठाना पसंद किया तो साले के साथ ऐसी घटना हो गई कि वो भी इस दौरे में कोई टेस्ट मैच नहीं खेल सका.
महाराजा पोरबंदर ने दो शादियां की थीं. लिंबडी पहली बीवी के भाई थे. हुआ ये था कि इस दौरे में महाराजा पटियाला को कप्तान बनकर इंग्लैंड पर जाना था लेकिन तबीयत खराब होने से ये जिम्मा राजा नटवर सिंह को दिया गया. ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि टीम का कप्तान किसी राजघराने के राजा को ही बनाना था.
अजीबोगरीब राजा और उनकी सनक
महाराजा के बारे में अजीब-अजीब बातें इस दौरे में कही गईं. भारतीय टीम ने इस दौरे में कुल मिलाकर 26 मैच खेले, जिसमें टेस्ट मैच भी थे. महाराजा आमतौर पर फील्डिंग करना पसंद नहीं करते थे. वह केवल बल्लेबाजी करने के लिए आते थे. इंग्लैंड दौरे के पहले चार फर्स्ट क्लास मैचों में वह केवल दो रन बना पाए. उन्हें समझ में आ गया कि अगर वो और मैच खेलेंगे तो उनकी फजीहत ही होगी. अलबत्ता चालाकी का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने खुद को अनफिट कह दिया. इसके बाद उन्होंने कप्तानी उस दौर के टैलेंटेड क्रिकेटर और बल्लेबाज सीके नायडु को दे दी.
रन से ज्यादा तो रोल्स रॉयस थीं महाराजा के पास
लोग मजाक में कहते थे कि महाराजा ने इंग्लैंड में जितने रन नहीं बनाए, उससे ज्यादा तो उनके पास रोल्स रॉयस कारें थीं. महाराजा के पास सात रोल्स रॉयस कारें थीं. सीके नायडु मैदान पर बेशक कप्तानी करते थे लेकिन ऐसा लगता था कि पैवेलियन में बैठकर असली कप्तानी महाराजा ही कर रहे हैं.
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