आप सभी को बता दें कि आज नवरात्रि का चौथा दिन माता के कूष्मांडा रूप का पूजन किया जाता है. और वह अपनी मंद मुस्कान से 'अंड' यानी 'ब्रह्मांड' की उत्पत्ति करने के कारण जानी जाती है और यहीं वजह है कि उन्हें कूष्मांडा माता कहा जाता है. यह भी मान्यता है कि जब दुनिया नहीं थी, तब देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी और यह वजह है कि इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति कहते हैं.
कैसा है मां कूष्मांडा का स्वरूप - आप सभी को बता दें कि देवी की आठ भुजाएं हैं और उन्होंने कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृत कलश, चक्र, गदा व आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला धारण कर रखी है. माता सिंह पर सवार होकर आती हैं.
कैसे पड़ा कूष्मांडा नाम - कहा जाता है कि यह माता नवदुर्गा का चौथा स्वरूप हैं और अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा.
ऐसे करें मां का पूजन - माता के पूजन के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर लेना चाहिए और उसके बाद हरे कपड़े पहनकर मां कूष्मांडा का पूजन करें. कहते हैं पूजन के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ और कुम्हड़ा अर्पित करें. इसके बाद उनके मुख्य मंत्र "ओम कूष्माण्डा देव्यै नमः" का 108 बार जाप करें. चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं. यह भी कहा जाता है कि माता कूष्मांडा का विधि-विधान के साथ पूजन करने के बाद महादेव और परमपिता ब्रह्मा जी का भी विधि पूर्वक पूजन करना जरुरी है.
मां कूष्मांडा का स्त्रोत पाठ -
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
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