नवरात्रि का प्रत्येक दिन मां दुर्गा को समर्पित है। नवरात्रि के नौ दिनों तक दुर्गा मां के भिन्न-भिन्न नौ रूपों की वंदना की जाती है। नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक घरों, मन्दिरों में विधिविधान से पूजन-अर्चना कर श्रद्धालु मां भगवती से आशीष प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा के भिन्न-भिन्न स्वरूपों की आराधना करने से खास कृपा प्राप्त होती है। हवन तथा पूजा पाठ करने से न सिर्फ मानसिक शक्ति मिलती है, बल्कि इससे विचारों में भी शुद्धि आती है। हर साल नवरात्रि के साथ एक नए जोश का आगाज माना जाता है, क्योंकि उसके पश्चात् से एक के पश्चात् एक फेस्टिवल का अम्बार लग जाता है।
वही जब माता सती ने पिता के द्वारा प्रभु शिव के अंदर पर यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण दे दिए, तब भगवान शिव, माता के मृत शरीर को कंधे पर लेकर महातांडव करने लगे तथा ब्रह्मांड को नष्ट करने पर उत्तर आए। ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शव को अपने चक्र से टुकड़ों में काट दिया। जहां-जहां माता सती के शरीर के टुकड़े वस्त्र अथवा रत्न गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया हैं। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में बिखरे हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं।
वही 51 शक्तिपीठों में से पांच शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम शहर में है जो बकुरेश्वर, नालहाटी, बन्दीकेश्वरी, फुलोरा देवी तथा तारापीठ के नाम से प्रसिद्ध है। इनमें तारापीठ सबसे मुख्य धार्मिक स्थल तथा सिद्धपीठ हैं। पश्चिम बंगाल के वीरभूम शहर में रामपुरहाट से 8 किलोमीटर की दूरी पर द्वारका नदी के तट पर मां तारा का विख्यात सिद्धपीठ है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इस महातीर्थ में माता सती के सीधी आंख की पुतली का तारा गिरा था। इसलिए इस धार्मिक स्थल को नयन तारा भी कहते हैं तथा इसी को लेकर मंदिर का नाम तारापीठ पड़ा तथा उसी के नाम पर इस स्थल को तारापीठ कहा जाने लगा।
कन्याओं के रूप में दर्शन देती है माँ कन्याकुमारी