आप सभी जानते ही है कि हर साल नवरात्र का पर्व मनाया जाता है. ऐसे में इस साल नवरात्र का पर्व मनाया जा रहा है और आज नवरात्र का चौथा दिन है. आप सभी को बता दें कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा-आराधना की जाती है. कहा जाता है इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है. इसी के साथ देवी कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. कूष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़ा यानी कद्दू. आप सभी को बता दें कि देवी दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप को कुम्हड़े की बलि ज्यादा प्रिय है. इसलिए इन्हें कूष्मांडा देवी कहा जाता है. तो आइए जानते हैं मां कूष्माण्डा की कथा और उनका स्त्रोत पाठ.
मां कूष्माण्डा स्त्रोत पाठ
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्.
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्.
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
माता की कथा- एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं. इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है. वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है. कहा जाता है इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं. मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. केवल इतना ही नहीं बल्कि मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं.
ऐसे में आज के दिन यदि आप मां कूष्मांडा की उपासना करने जा रहे हैं तो सबसे पहले मां का ध्यान मंत्र पढ़कर उनका आहवान करें.
मंत्र : स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता.
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः..
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