चैत्र नवरात्रि हो या फिर आश्विन नवरात्रि हो दोनों ही नवरात्र का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. इस दौरान 9 दिनों तक अलग-अलग देवियों का पूजन किया जाता है और उपवास भी रखा जाता है. हालांकि इससे पहले नवरात्र के शुरुआत के साथ स्थापित होने वाले कलश और पूजा विधि एवं मन्त्रों के बारे में जानना जरूरी है.
घट या कलश स्थापना..
घट या कलश का सीधा संबंध भगवान श्री गणेश से है. कलश को हमारे शास्त्रों में श्री गणेश की संज्ञा दी है. किसी भी शुभ काम में श्री गणेश को पहले आमंत्रित किया जाता है. नवरात्र के पहले दिन कलश की स्थापना का विशेष महत्व है. इसकी स्थापना के साथ ही नवरात्रि की शुरुआत मानी जाती है.
घट या कलश स्थापना की विधि-नियम...
सर्वप्रथम इसके लिए दिशा का चयन करें. उत्तर-पूर्व दिशा श्रेष्ठ होगी. यह साफ़-सफाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. जिस स्थान पर कलश की स्थापना होनी हो, उसे अच्छे से गंगा जल से साफ़ कर लें. अब जमीन या फिर पटिए पर साफ मिट्टी रखें, अब उस पर जौ बिछाएं और फिर से उस पर साफ मिट्टी की परत बिछाएं. इसके पश्चात जल का छिड़काव करें. अब कलश की स्थापना उस पर रखकर करें. पूरे लौटे को शुद्ध जल से भरें (गंगा जल भी मिलाए और एक सिक्का भी रखें) और फिर नारियल एवं आम के पत्ते रखकर कलश पर जल का छिड़काव करें. अब अंतिम चरण में कलश पर दाहिना हाथ रखें और नीच बताए जा रहे मंत्र का जाप करे.
मंत्र...
गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
घटस्थापना के बाद आपको नीचे बताए जा रहे मंत्रों के साथ पूजा का संकल्प लेना है.
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
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