नई दिल्ली: हाल ही में सांसद व पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने नारायणा में बीते शनिवार रात शहीदों के बच्चों के लिए आयोजित कार्यक्रम में कहा कि उनकी ख्वाहिश थी कि वे सेना में शामिल होकर देश की सेवा करें, लेकिन किस्मत को यह बात मंजूर नहीं हुई और वे क्रिकेटर बन गए. जंहा गौतम गंभीर बताते हैं कि वे जब 12वीं में थे, तब उनका चयन रणजी मैच के लिए हुआ था. वहीं इसके बाद क्रिकेट उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया, लेकिन क्रिकेटर बनने के बाद भी उनके मन में सैनिक बनने वाली बात हमेशा बनी रही. आज शहीदों के बच्चों के लिए कुछ करने का जज्बा उनकी इसी सोच का नतीजा है.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गौतम गंभीर ने कहा कि वे भले ही सैनिक नहीं बन पाए, लेकिन उनकी दिली ख्वाहिश है कि देश में शहीद हुए जवानों के बच्चे जो बनना चाहें, वे हर हाल में बनें. इसी सोच से प्रेरित होकर वे शहीदों के बच्चों के भविष्य को संवारने के प्रयास में जुटे हैं. वहीं कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए जवानों के परिवार जुटे थे. शहीदों के बच्चों का भी मानना है कि आप चाहे जिस पेशे में हों, आपके अंदर देश सेवा की सोच हमेशा होनी चाहिए.
वहीं दार्जिलिंग से आई चुंगजुंग शेरपा बताती हैं कि 2010 में उनके पिता असम में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. इसके कुछ वर्ष बाद चुंगजुंग की मां भी चल बसीं. माता-पिता की इकलौती संतान चुंगजुंग बताती हैं कि वे भी पिता की तरह देश के लिए कुछ करना चाहती हैं. वह आइपीएस अधिकारी बनना चाहती हैं.
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