नई दिल्ली : भारत में किसानों की आत्महत्या के किस्से तो हमने कई बार सुने है वही ज़्यादातर इन आत्महत्या का ज़िम्मेदार साहूकार को माना जाता रहा है. लेकिन 2015 और 2016 के सरकारी आंकड़े तो कुछ और ही कहते है.
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, किसानों की आत्महत्या के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि 2015 में देश में 3000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की थी. वही 19 अगस्त 2016 में एक अंग्रेजी अखबार के रिपोर्ट के अनुसार, किसानों की आत्महत्या के आंकड़े बताते हैं कि 2014 की तुलना में 2015 में 41.7 फीसद की बढ़ोतरी हुई थी. एनसीआरबी डाटा के अनुसार, 2015 में 8,007 आत्महत्या की घटनाएं हुई जो 2014 में 5,650 थी. अन्य राज्यों की सूची में महाराष्ट्र(3,030), तेलंगाना (1,358), कर्नाटक (1,197), छत्तीसगढ़ (854) व मध्यप्रदेश (516) आगे है.
वही योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजीत सेन ने बताया, ‘नवीनतम आंकड़े इसलिए रोचक हैं क्योंकि सबका मानना है कि किसानों की आत्महत्या के पीछे साहूकारों का हाथ होता है. आज भी आधे से अधिक किसान साहूकारों से कर्ज लेते हैं. हालांकि बैंकों की तुलना में साहूकारों से कर्ज लेना कहीं अधिक राहत का काम है क्योंकि वे मामले को देखते हुए कुछ संवेदनशील हो जाते हैं. चूंकि बैंकों में सख्त कानून होते हैं इसलिए वे ऐसा नहीं कर सकते. पंजीकृत सूक्ष्म वित्त संस्थानों की स्थिति तो इस मामले में और भी बदतर है. वे समय पर कर्ज चुकाने के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप पर दबाव बनाते रहते हैं कि यदि कर्ज का भुगतान समय पर नहीं हुआ तो उनके शेयर काट लिए जाएंगे‘ ऐसे में अगर कृषि संबंधित मामले जैसे फसलों की उपज में कमी की बात करे तो महाराष्ट्र में 769, तेलंगाना में 363, आंध्र प्रदेश में 153, कर्नाटक में 122 किसानों ने आत्महत्या करी है. इसके अलावा एनसीआरबी के अनुसार किसानों की आत्महत्या के लिए पारिवारिक मुश्किलें 933, बीमारी 842 भी आत्महत्या के कारण बने.