उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयन्ती सभागृह में संविधान की संरचना एवं सामाजिक उत्थान में डॉ.भीमराव अंबेडकर के योगदान पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन कार्यक्रम आयोजित किया गया। संगोष्ठी का प्रायोजन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा, लोक सेवा प्रबंधन एवं जनशिकायत निवारण मंत्री मध्य प्रदेश शासन श्री जयभानसिंह पवैया और ऊर्जा मंत्री श्री पारस जैन थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में लोकसभा सांसद प्रो.चिन्तामणि मालवीय और उज्जैन दक्षिण विधायक डॉ.मोहन यादव कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। दिल्ली के दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर श्री एसआर भट्ट ने सारस्वत अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शिरकत की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मंत्री श्री जयभानसिंह पवैया ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान में डॉ.अंबेडकर के विचारों और आदर्शों को सही स्वरूप में समझने की आवश्यकता है। एकाधिकार जमाना मनुष्य की शुरू से ही प्रकृति में रहा है और इसी कारण समाज में अस्पृश्यता और कुरीतियों का चलन बढ़ा। इतिहास में भी हम लोगों में एकता व समरसता की कमी के कारण ही विदेशी आक्रमणकारियों से हम पराजित हुए और उन्होंने हमारे देश पर शासन किया। समाज में अस्पृश्यता से बड़ा कोई अधर्म नहीं है। ये कुरीति मनुष्य को मनुष्य से अलग करती है, इसलिये इसे खत्म करने की जरूरत थी। ऐसी कुरीतियों और अस्पृश्यता के कलंक को धोने में डॉ.अंबेडकर का महान योगदान रहा है।
मंत्री श्री पवैया ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में इतिहास में दर्ज किया गया है, जो अनन्तकाल तक लोगों के स्मृति पटल पर अंकित रहेगा। बाबा साहब अंबेडकर के लिये राष्ट्र सर्वोत्तम था। उनका कहना था कि समाज में स्वतंत्रता सामाजिक समरसता के बिना संभव नहीं है। प्रेम के बिना आपसी भाईचारा और बंधुत्व उत्पन्न नहीं हो सकता है, इसलिये हम सबको अपने आपको भारत माता की सन्तान मानना होगा। हमें बाबा साहब अंबेडकर के इन्ही महान विचारों को अंगीकार करना होगा।