16 फरवरी को करें मां नील सरस्वती की पूजा, शत्रु को हराने के लिए पढ़े नील सरस्वती स्त्रोत

16 फरवरी को करें मां नील सरस्वती की पूजा, शत्रु को हराने के लिए पढ़े नील सरस्वती स्त्रोत
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बसंत पंचमी का पर्व हर साल मनाया जाता है। इस साल यह पर्व कल यानी 16 फ़रवरी, मंगलवार को मनाया जाने वाला है। जी दरअसल हिंदू पंचांग के अनुसार, बसंत पंचमी हर साल माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। आप सभी जानते ही होंगे कि इसी दिन विद्या की देवी यानी सरस्वती माता की भी जयंती मनाई जाती है। जिस दिन बसंत पंचमी होती है उस दिन लोग पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं। वैसे इस दिन ही मां नील-सरस्वती की पूजा भी करनी चाहिए क्योंकि यह भी विशेष फलदायी है। कहा जाता है जैसे मां सरस्वती विद्या और ज्ञान की देवी हैं ठीक वैसे ही मां नील सरस्वती धन और सुख, समृद्धि देने वाली देवी हैं। पौराणिक मान्यताओं की माने तो मां नील सरस्वती की पूजा करने और नील-सरस्वती स्त्रोत का पाठ करने से शत्रु पराजित होते हैं। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं नील-सरस्वती स्त्रोत।


नील-सरस्वती स्त्रोत:

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयंकरि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।1।।


ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।2।।

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।3।।

सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोSस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्।।4।।

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।5।।

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नम:।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्।।6।।

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्।।7।।

इन्द्रादिविलसदद्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्।।8।।

अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां य: पठेन्नर:।
षण्मासै: सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।।9।।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां विद्यां तर्कव्याकरणादिकम।।10।।

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाSन्वित:।
तस्य शत्रु: क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते।।11।।

पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय:।।12।।

इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत।।13।।

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