आज मतलब 1 जून के ही दिन भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी का निधन हुआ था। जब वो 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में पराजित गए तो खेती-किसानी करने आंध्र प्रदेश में अपने गांव इलूर लौट गए थे। वो राजनीती से संन्यास लेने का ऐलान कर चुके थे। अपने जीवन से खुश थे। अचानक आठ वर्ष पश्चात् उनकी किस्मत ने पलटा खाया तथा वो निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए। उन्हें देश के ऐसे राष्ट्रपति के रूप में भी याद किया जाता है जो इस भव्य परिसर वाले आलीशान भवन के सिर्फ एक कमरे में रहते थे। वो ये भी चाहते थे कि राष्ट्रपति भवन के शेष कमरे रिक्त कर दिए जाएं। बाकी में उन्हें बहुत समझाया बुझाया गया, तो राष्ट्रपति भवन में रहने आए मगर यहां उनका जीवन बहुत सादगी वाला था।
70 फीसदी वेतन सरकारी निधि में देते थेवो भारत के ऐसे राष्ट्रपति भी थे, जो अपने वेतन का 70 फीसदी भाग सरकारी निधि में दे देते थे। उन्होंने अन्य राष्ट्रपतियों की भांति नौकर-चाकरों का अमला अपने निजी उपयोग के लिए नहीं रखा था। वो प्रयास करते थे कि प्रत्येक आम आदमी भी उनसे मिलने के लिए राष्ट्रपति भवन में आ सके। नीलम संजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले इल्लूर गांव में संपन्न परिवार में पैदा हुए थे। बहुत जमीनें थीं। बड़ी खेती थी। पिता का रूतबा था। मगर नीलम संजीव रेड्डी अलग मार्ग ही चल पड़े। पहले वो स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदे। महात्मा गांधी से प्रभावित हुए। स्वतंत्रता के पश्चात् वो नेहरू के करीबी नेताओं में थे।
जब 1962 में आंध्र प्रदेश नया प्रदेश बना तो तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें वहां का प्रथम सीएम बनाया। इसके पश्चात् वो केंद्र में मंत्रिमंडल मंत्री बनकर आ गए। पहले लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए फिर इंदिरा गांधी के पीएम बनने के चलते भी मंत्रीमंडल मंत्री रहे। तब कांग्रेस पर सिंडिकेट का प्रभाव था। सिंडिकेट के प्रभाव की वजह से ही वो 1967 के चुनावों के पश्चात् लोकसभा के स्पीकर बने। हालांकि कहा जाता है कि इससे पहले उनकी इंदिरा गांधी से किसी बात पर ठन गई। राजनीती गलियारों में कहा जाता है कि इंदिरा गांधी उन्हें जरा भी पसंद नहीं करती थीं। लिहाजा जब कांग्रेस के सिंडिकेट ने बिना इंदिरा गांधी की इच्छा जाने नीलम संजीव रेड्डी को रा्ष्ट्रपति का प्रत्याशी बना दिया तो इंदिरा नाराज हो गईं। वही फिर स्पीकर पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे नीलम संजीव रेड्डी चुनाव हार गए। सिंडिकेट की बेहद किरकिरी हुई। बाद में पार्टी टूटी भी। मगर नीलम रेड्डी इस पराजय को बर्दाश्त नहीं कर पाए। उन्होंने सियासत से संन्यास लेने का ऐलना किया तथा आंध्र प्रदेश लौट गए जिससे खेती-किसानी करा सकें।
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