नीरजा भनोट, वो भारतीय नारी, जिसने इस्लामी आतंकियों से बचाई 350 लोगों की जान

नीरजा भनोट, वो भारतीय नारी, जिसने इस्लामी आतंकियों से बचाई 350 लोगों की जान
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नई दिल्ली: 5 सितंबर 1986, मुम्बई से न्यूयॉर्क के लिए रवाना हुआ PAN AM Flight 73, जो कि एक सामान्य उड़ान की तरह शुरू हुई, अचानक आतंकवादियों की दहशत से भर गई। इस उड़ान की फ्लाइट अटेंडेंट नीरजा भनोट उस दिन एक सच्ची नायिका बन गईं, और उनका साहस दुनिया भर में आज भी याद किया जाता है। 

 

जब विमान कराची में लैंड हुआ, चार सशस्त्र आतंकवादी विमान में घुस गए। नीरजा भनोट ने तुरंत इंटरकॉम के माध्यम से कॉकपिट में सूचना भेजी कि विमान में आतंकवादी घुस आए हैं। इस सूचना के आधार पर, पायलटों ने तुरंत विमान को छोड़ दिया और बचे हुए 400 यात्री और 13 क्रू सदस्य आतंकवादियों के सामने फंस गए। पायलटों के चले जाने के बाद, नीरजा भनोट सबसे वरिष्ठ क्रू मेंबर बन गईं और उन्हें स्थिति संभालनी पड़ी। अबू निदाल संगठन से जुड़े आतंकियों ने नीरजा को सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्ठा करने का आदेश दिया। लेकिन नीरजा ने चतुराई का परिचय देते हुए 4 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपा दिए, जिससे आतंकवादी उन्हें पहचानकर मार न सकें।

फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने विमान को इजराइल के किसी विशेष स्थान पर गिराने का प्लान बनाया था, बिलकुल 9/11 की तरह। लेकिन, सत्रह घंटे बंधक बनाए रखने के बाद, जब आतंकवादियों की पायलटों की मांग पूरी नहीं हुई, तो उन्होंने यात्रियों की हत्या और विमान में विस्फोटक लगाने की धमकी दी। इस खतरनाक मोड़ पर, नीरजा ने तुरंत विमान का इमरजेंसी एक्सिट खोल दिया और यात्रियों को बाहर निकलने का रास्ता दिखाया। आतंकवादी फायरिंग कर रहे थे, और जब नीरजा को भी बाहर निकलने का मौका मिला, फिर भी उन्होंने खुद को पीछे रखकर यात्रियों की मदद की। उन्होंने तीन बच्चों को अपनी बाहों में समेट लिया और अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की कोशिश की। नीरजा भनोट ने अपने शरीर से बच्चों को ढकते हुए वीरगति को प्राप्त किया, उनकी बहादुरी ने उन्हें अमर बना दिया। 

अंततः आतंकियों के पास गोला-बारूद खत्म हो गया और पाकिस्तानी सेना ने विमान पर धावा बोलकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन पर मुकदमा चलाया गया और शुरू में उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई, लेकिन बाद में उनकी सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।

नीरजा 22 लोगों को छोड़कर बाकी सबको बचाने में कामयाब रही, जिन्हे आतंकियों ने गोली मार दी थी। नीरजा की इस अद्वितीय वीरता और साहस के लिए भारत ने उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च शांति कालीन वीरता पुरस्कार, “अशोक चक्र” से सम्मानित किया। अमेरिका ने उन्हें “जस्टिस फॉर क्राइम” अवार्ड दिया। नीरजा भनोट का बलिदान आज भी हर भारतीय के दिल में गहराई से अंकित है, और हर साल 7 सितंबर को, उनके जन्मदिवस पर, भारत माँ की वीरांगना को देश बारम्बार नमन करता है। नीरजा की कहानी एक प्रेरणादायक गाथा है, जिसने अपनी सूझबूझ, बहादुरी और चतुराई से सैकड़ों लोगों के जीवन को बचाया और विश्व पटल पर भारत का मान बढ़ाया। उनका नाम एक नायिका के रूप में इतिहास में अमर रहेगा।

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