नई दिल्ली: आज पूरा विपक्ष, खासकर कांग्रेस पार्टी, सड़क से लेकर संसद तक बाबा साहेब अंबेडकर के नाम की माला जप रही है। मौजूदा सरकार पर अंबेडकर का अपमान करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस को अपने अतीत में झांकने की जरूरत नहीं है? आइए कुछ सालों पुराने एक किस्से पर जरा गौर करते हैं, जिससे कांग्रेस का अंबेडकर प्रेम स्पष्ट हो जाएगा।
11 मई 2012 को संसद में उस समय बड़ा हंगामा हुआ था, जब तमिलनाडु के सांसद थिरुमावलवन ने NCERT की पाठ्यपुस्तक में प्रकाशित एक कार्टून पर आपत्ति जताई। इस कार्टून में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चाबुक पकड़े दिखाया गया था और बाबा साहेब अंबेडकर एक घोंघा चलाते नजर आ रहे थे, जो भारतीय संविधान का प्रतीक था। इस कार्टून को अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों ने अंबेडकर का घोर अपमान बताया था। हंगामे के बाद संसद स्थगित करनी पड़ी।
2012 में UPA-2 के दौरान, NCERT की कक्षा 11 की पाठ्य पुस्तक में एक आपत्तिजनक कार्टून शामिल किया गया था, जिसमें नेहरू को बाबा साहेब अंबेडकर को कोड़े मारते हुए दिखाया गया था।
— हरनाथ सिंह यादव (@harnathsinghmp) December 20, 2024
भाजपा के कड़े विरोध के बाद कांग्रेस माफ़ी मांगने की बजाय बहाने बनाती नज़र आई थी।
इससे साबित होता है कि आज… pic.twitter.com/uSQA3kiXLV
इस विवादित कार्टून को 2006 में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान NCERT की पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया गया था। इस कार्टून की कल्पना प्रसिद्ध कलाकार के. शंकर पिल्लई ने की थी। देशभर में इसका विरोध हुआ और यह मुद्दा दलित समुदाय के लिए गहरे अपमान का प्रतीक बन चुका था। इतना ही नहीं, पुणे विश्वविद्यालय में पाठ्यपुस्तक समिति के सदस्य डॉ. पलशीकर के कार्यालय में तोड़फोड़ भी हुई।
आज कांग्रेस जब अंबेडकर के सम्मान की बात कर रही है, तो उसे यह भी याद करना चाहिए कि ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा उर्फ सैम पित्रोदा ने इसी साल 2024 में यह बयान दिया था कि संविधान निर्माण में नेहरू का हाथ था, अंबेडकर का नहीं। उन्होंने कहा था कि, "ये भारत के इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है कि अंबेडकर ने संविधान लिखा।" यह बयान कांग्रेस की मानसिकता को उजागर करता है कि वह बाबा साहेब अंबेडकर को केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल करती है। कांग्रेस ने अब तक सैम पित्रोदा के बयान को न तो खारिज किया है और न ही उनसे कोई जवाब मांगा है। तो क्या कांग्रेस भी इस बात का समर्थन करती है कि संविधान अंबेडकर ने नहीं, नेहरू ने लिखा ? वरना वो पित्रोदा का विरोध जरूर करती।
क्या कांग्रेस के इस रवैये से बाबा साहेब के अनुयायियों को ठेस नहीं पहुंची होगी? यह वही कांग्रेस है जिसने अंबेडकर का अपमान करने वाले कार्टून को स्कूली पाठ्यपुस्तक में प्रकाशित किया। अंबेडकर के प्रति कांग्रेस का रवैया हमेशा दोहरा रहा है। जब दलित वोटों की जरूरत होती है तो उनके नाम का जाप किया जाता है, लेकिन जब उनके योगदान को स्वीकारने की बात आती है तो नेहरू की आड़ में उन्हें पीछे कर दिया जाता है। बाबा साहेब अनुच्छेद 370 के विरोधी थे, लेकिन फिर भी नेहरू के दबाव के आगे वे कुछ ना कर सके और जम्मू कश्मीर के दलित अपने अधिकारों से वंचित रह गए। 370 हटने से पहले तक, उन्हें ना वोट देने का अधिकार था और ना ही नौकरी का। कितना भी पढ़ लेने के बावजूद सिर्फ सफाईकर्मी की नौकरी उन्हें दी जाती थी। क्या कोई अंबेडकर समर्थक ऐसा हो सकता है, जो उनके अनुयायी दलित समुदाय से वोटिंग का अधिकार ही छीन ले ?
आज कांग्रेस जिस तरह दूसरों पर अंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगा रही है, उसे पहले अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है। उसे यह देखना चाहिए कि उसने खुद अतीत में बाबा साहेब के लिए क्या किया है। क्या संविधान निर्माता और दलित नेता के लिए उस कार्टून से ज्यादा अपमानजनक कुछ हो सकता था? इस मुद्दे ने न सिर्फ अंबेडकर के अनुयायियों बल्कि पूरे देश के संविधान पर आस्था रखने वाले करोड़ों भारतीयों को झकझोर दिया था। कांग्रेस को चाहिए कि वह पहले अपने पुराने घावों पर मरहम लगाए और फिर दूसरों पर आरोप लगाने से पहले आत्मविश्लेषण करे।