मुस्लिम लड़कों ने किया शिवलिंग पर पेशाब, कश्मीरी पंडितों से नेहरू ने कहा था- 'शेख अब्दुल्ला का साथ दो, या जहन्नुम में जाओ'

मुस्लिम लड़कों ने किया शिवलिंग पर पेशाब, कश्मीरी पंडितों से नेहरू ने कहा था- 'शेख अब्दुल्ला का साथ दो, या जहन्नुम में जाओ'
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‘द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files)’ फिल्म इस समय हर जगह सुर्ख़ियों में बनी हुई है और इस फिल्म को बहुत प्यार मिल रहा है। इस फिल्म को बनाने में काफी मेहनत लगी है। आप सभी को बता दें कि उस दौर में कश्मीरी पंडितों से नेहरू ने कहा - "या तो शेख अब्दुल्लाह के साथ रहो, या जहन्नुम में जाओ।" वहीं राजीव गाँधी ने कहा था - "फारूक मेरे दोस्त हैं, क्या करें।" वहीं कई पीड़ितों ने अपनी दर्द की दास्ताँ सुनाई जो इस समय वायरल हो रही है। फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री, अभिनेता अनुपम खेर, अभिनेत्री पल्लवी जोशी, निर्माता अभिषेक अग्रवाल और ‘ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा’ के अध्यक्ष सुरिंदर कौल की मौजूदगी में नई दिल्ली में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिल्म के पीछे की मेहनत और रिसर्च को एक डॉक्यूमेंट्री के रूप में पेश किया गया।

इस दौरान बताया गया है कि तमाम फतवों के बावजूद कैसे इस फिल्म के निर्माण को पूरा किया गया। जी दरअसल निर्देशक विवेक अग्निहोत्री का कहना है कि जब कश्मीर में पंडितों के नरसंहार से जुड़ी मानवीय कहानियों से उनका परिचय हुआ, तब जाकर उन्होंने इस विषय पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। वहीं इस दौरान कश्मीरी पंडित राजेंद्र कौल ने बताया कि, 'कश्मीर’ नाम इतना प्राचीन है कि महाभारत के समय में भी इसका उल्लेख मिलता है। 1100-1200 ईस्वी तक वहाँ केवल हिन्दू ही रहा करते थे। भारत के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक ललितादित्य का शासनकाल था, जब भारत के अधिकतर हिस्सा उनके अंतर्गत आता था – ये भी बताया गया है। वहीं डॉक्टर राकेश कौल ने बताया कि कैसे कश्मीर के शाही राजा लोग हिन्दू थे, जिन्होंने अफगानिस्तान में शासन किया।' आगे उन्होंने बताया, 'इसके बाद आक्रांता लोग आने लगे, जिन्होंने पहले मदद का दिखावा किया और फिर वहाँ कब्ज़ा करने लगे। इसी तरह शम्सुद्दीन ऐराकी भी ईराक से आया और उसने न सिर्फ जबरन धर्मांतरण किया, बल्कि कई मंदिरों को भी तोड़ा। उसने अपने आत्मकथा में भी लिखा है कि कैसे उसने कश्मीर में लोगों को मुस्लिम बनाया। विशेषज्ञ कहते हैं कि ये एक निरंतर नरसंहार है, जो कई वर्षों से हो रहा है और लगातार होता रहा। नब्बे के दशक से पहले भी ये हो रहा था।' केवल यही नहीं बल्कि एक विशेषज्ञ ने बताया कि, 'कैसे कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला ने भाषण दिया था कि कश्मीरी पंडित स्वाभाविक रूप से ‘मुस्लिमों के दुश्मन’ हैं। उन्होंने कश्मीरी पंडितों की तुलना शैतान से कर दी। और जब कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने पहुँचा, जब नेहरू ने कहा – ‘ये तो शेख अब्दुल्ला का साथ दो, या जहन्नुम में जाओ।’

कश्मीरी समस्या के लिए ब्रिटिश को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है, क्योंकि वो जहाँ भी गए वहाँ दिक्कतें खड़ी हो गईं।' ठीक ऐसे ही जीवन ज़ुत्शी ने बताया कि पुराने कश्मीर के निवासी अथवा कश्मीरी पंडितों ने 1947 से ही घाटी को छोड़ना शुरू कर दिया था। वहीं बंसी पंडित ने बताया कि 1967 में वो कॉलेज में थे और तब एक लड़की थी, जिसका नाम परमेश्वरी था। उस नाबालिग हिन्दू लड़की का अपहरण कर के इस्लामी धर्मांतरण करा दिया गया था और ‘परवीन अख्तर’ नाम दे दिया गया। इसके बाद उसकी शादी एक मुस्लिम से कर दी गई। राज्य और केंद्र सरकार शांत रही। इस दौरान एक महिला ने बताया कि कश्मीरी लड़के भगवान शिव की प्रतिमा पर पेशाब कर देते थे। एक पुजारी की हत्या हुई और उसके बाद उनके होठ सिल कर उन्हें एक पेड़ पर लटका दिया गया था।

वहीं अनुपम खेर ने बताया कि कश्मीर में पंडितों से कहा जाता था कि अपनी कंट्री में जाओ, जबकि भारत के अंदर ही कश्मीर है। , ऐसे में वो दोबारा उस घर को गलत हालत में देख कर रो पड़ेंगी। इस तरह कई लोगों ने अपनी ऐसी-ऐसी कहानियां सुनाई कि सुनने वालों की आँखे भर आईं।

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