नेताजी बोस ने 1943 में ही बना दी थी आज़ाद भारत सरकार, कई देशों ने मान्यता भी दी..

नेताजी बोस ने 1943 में ही बना दी थी आज़ाद भारत सरकार, कई देशों ने मान्यता भी दी..
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नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नए आयाम पर पहुंचा दिया था। उन्होंने आजादी से चार साल पहले ही, 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में भारत की अस्थायी सरकार का गठन कर दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ा चुका है। इस सरकार के प्रमुख स्वयं नेताजी सुभाष थे। इस ऐतिहासिक घोषणा के बाद, जापान, जर्मनी, इटली, थाईलैंड, क्रोएशिया, फिलीपींस और बर्मा सहित 10 से अधिक देशों ने इस सरकार को मान्यता दी।  

नेताजी के नेतृत्व में गठित यह अस्थायी सरकार केवल एक प्रतीकात्मक कदम नहीं था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक ठोस और सशक्त योजना थी। नेताजी ने जापान की दक्षिणी सेना के कमांडर फील्ड मार्शल हिसाएची तेरावची को स्पष्ट रूप से बता दिया था कि वह भारत पर कब्जा जमाए अंग्रेजी शासन पर हमला करने की योजना बना रहे हैं। उनकी योजना थी कि भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कर, उसे स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया जाए।  

1915 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह, रास बिहारी बोस और निरंजन सिंह गिल द्वारा बनाई गई सेना, जिसे पहले "आजाद हिंद की सेना" कहा जाता था, नेताजी के नेतृत्व में "आजाद हिंद फौज" के रूप में प्रसिद्ध हुई। इस फौज में 45,000 सैनिक थे, जिसमें एक महिला बटालियन भी शामिल थी। यह बटालियन 'रानी झांसी रेजिमेंट' के नाम से जानी जाती थी। इस फौज की खासियत यह थी कि इसका अपना बैंक, मुद्रा और डाक टिकट भी था। नेताजी के इस दूरदर्शी नेतृत्व ने इसे एक संपूर्ण सेना के रूप में स्थापित किया।  

जब जापान ने सिंगापुर पर कब्जा कर लिया, तो लगभग 60,000 भारतीय ब्रिटिश सेना छोड़कर आईएनए के साथ जुड़ गए। जापानी जेलों की दुर्दशा और नेताजी के प्रेरक नेतृत्व ने इन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, 1944 तक जापानी और आईएनए के सैनिकों के बीच तालमेल में कमी आने लगी। रसद की आपूर्ति रुकने के कारण सैनिकों को जंगल की घास और जड़ों पर निर्भर रहना पड़ा। भूख और बीमारी से हजारों सैनिकों की मौत हो गई, और इम्फाल तक पहुंचते-पहुंचते सेना का मनोबल कमजोर पड़ने लगा।  

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि स्वतंत्रता केवल अंग्रेजों के साथ समझौता करके नहीं, बल्कि उनके खिलाफ निर्णायक संघर्ष करके ही संभव है। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उनकी योजनाओं को समर्थन नहीं दिया। यदि कांग्रेस ने नेताजी की अस्थायी सरकार और आजाद हिंद फौज का समर्थन किया होता, तो भारत संभवतः अंग्रेजों की शर्तों पर स्वतंत्रता लेने को मजबूर नहीं होता।  

नेताजी का रास्ता अगर अपनाया गया होता, तो देश का बंटवारा भी रोका जा सकता था। उन्होंने भारत को एकजुट और सशक्त बनाने का सपना देखा था, जहां हर जाति, धर्म और भाषा के लोग एकजुट होकर अपने देश को स्वतंत्र बना सकें। उनके दूरदर्शी नेतृत्व का विरोध और उपेक्षा करना स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी भूलों में से एक थी।  

आजाद हिंद फौज का सपना तो अधूरा रह गया, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यह कोशिश हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी अस्थायी सरकार और स्वतंत्रता की योजना ने यह साबित कर दिया कि भारत में न केवल आजादी पाने की क्षमता थी, बल्कि वह इसे अपने बल पर हासिल भी कर सकता था। नेताजी का साहस, उनका समर्पण और उनकी दूरदर्शिता भारत के इतिहास में सदैव एक उज्ज्वल अध्याय बने रहेंगे। 

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