नेताजी बोस को 'राष्ट्रपुत्र' घोषित किया जाए..! जयंती पर हाईकोर्ट में याचिका, आज़ाद हिन्द फ़ौज का जिक्र

नेताजी बोस को 'राष्ट्रपुत्र' घोषित किया जाए..! जयंती पर हाईकोर्ट में याचिका, आज़ाद हिन्द फ़ौज का जिक्र
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भुवनेश्वर: आज भारत नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 128वीं जयंती मना रहा है। इस मौके पर ओडिशा हाईकोर्ट में एक महत्वपूर्ण याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि नेताजी को आधिकारिक तौर पर "राष्ट्रपुत्र" का दर्जा दिया जाए। इसके साथ ही, याचिका में 21 अक्टूबर को, जिस दिन नेताजी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी, "नेशनल डे" घोषित करने की मांग भी की गई है। कटक के सामाजिक कार्यकर्ता पिनाक पानी मोहंती ने इस याचिका को दायर किया है। उनका कहना है कि नेताजी ने भारत की आजादी के लिए जो बलिदान दिया, उसे इस मान्यता के माध्यम से उचित सम्मान मिलना चाहिए।  

नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसा अध्याय हैं, जिनका योगदान असाधारण था। उन्होंने 1943 में आजाद हिंद फौज की स्थापना की और इसके बल पर उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। नेताजी ने सिंगापुर में भारत की अंतरिम सरकार, "आर्ज़ी हुकूमत-ए-आज़ाद हिंद," की स्थापना की, जो भारत की पहली स्वदेशी सरकार थी। यह सरकार न केवल प्रतीकात्मक थी, बल्कि इसे जर्मनी, जापान, इटली जैसे 9 बड़े देशों ने आधिकारिक तौर पर मान्यता भी दी थी। नेताजी ने इस सरकार के लिए अपना बैंक और मुद्रा भी स्थापित की थी और इसका उद्देश्य भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना था।

हालांकि, नेताजी के इस ऐतिहासिक कदम को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं का समर्थन नहीं मिला। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने नेताजी की इस अंतरिम सरकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया। उस समय कांग्रेस नेतृत्व का मानना था कि अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही स्वतंत्रता हासिल की जा सकती है, जबकि नेताजी का दृष्टिकोण बिल्कुल अलग था। उनका मानना था कि अगर ब्रिटिश साम्राज्य को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करना है, तो क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे।

नेताजी की यह सरकार, जिसकी अपनी फौज और आर्थिक प्रणाली थी, एक ठोस स्वतंत्रता आंदोलन का आधार बन सकती थी। लेकिन कांग्रेस नेताओं के विरोध और सहयोग की कमी के कारण इस आंदोलन को वह समर्थन नहीं मिला, जिसकी उसे जरूरत थी। अगर उस समय नेताजी के नेतृत्व को सही मान्यता और सहयोग मिला होता, तो भारत की आजादी संभवतः अंग्रेजों की शर्तों पर नहीं मिलती और शायद देश का बंटवारा भी टल सकता था। 

इस याचिका में मोहंती ने यह भी मांग की है कि नेताजी के रहस्यमयी तरीके से लापता होने के पीछे की सच्चाई को उजागर किया जाए। उन्होंने जस्टिस मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है, जिसमें नेताजी के लापता होने से जुड़े तथ्यों का खुलासा है। इससे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्रालय को इस विषय पर ज्ञापन भी सौंपा था। कोई जवाब न मिलने पर उन्होंने अब हाईकोर्ट का रुख किया है। ओडिशा हाईकोर्ट के कार्यवाहक जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस मृगांक शेखर साहू की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की और केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है। इस मामले पर अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी। 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साहसिक निर्णय और उनकी दूरदर्शिता ने स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा भरी थी। आज उनकी जयंती पर यह विचार करना जरूरी है कि उनके बलिदानों और योगदान को इतिहास में उचित स्थान और मान्यता मिले। उनका सपना एक स्वतंत्र, अखंड और सशक्त भारत का था, जिसे हमें साकार करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

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