मंडी: भारत राष्ट्रीय समिति (बीआरएस) के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव (KTR) ने आज लोकसभा चुनाव के लिए हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार कंगना रनौत पर कटाक्ष किया, क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को देश का पहला प्रधानमंत्री बताया था। एक्स पर एक पोस्ट में KTR ने कहा, "उत्तर से एक बीजेपी उम्मीदवार का कहना है कि सुभाष चंद्र बोस हमारे पहले पीएम थे!! और दक्षिण के एक अन्य बीजेपी नेता कहते हैं कि महात्मा गांधी हमारे पीएम थे!! इन सभी लोगों ने कहां से ग्रेजुएशन किया?"
एक टेलीविजन साक्षात्कार में, अभिनेता-सह-राजनेता ने कहा, "मुझे एक बात बताओ, जब हमें आजादी मिली, तो भारत के पहले पीएम नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहां गए थे?" कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने भी कंगना रनौत के बयान को शेयर करते हुए लिखा, 'उन्हें हल्के में मत लीजिए- वह बीजेपी नेताओं की लिस्ट में सबसे आगे निकल जाएंगी।' बता दें कि 24 मार्च को भाजपा द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए 111 उम्मीदवारों में से एक के रूप में कंगना रनौत को नामित किया गया था। एक इंस्टाग्राम पोस्ट में, कंगना रानौत - जो भाजपा और पीएम मोदी की मुखर समर्थक रही हैं - ने कहा कि वह भाजपा में शामिल होकर सम्मानित महसूस कर रही हैं।
रनौत ने कहा था कि "मेरे प्यारे भारत और भारतीय जनता की अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हमेशा मेरा बिना शर्त समर्थन मिला है, आज भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने मुझे मेरे जन्मस्थान हिमाचल प्रदेश, मंडी (निर्वाचन क्षेत्र) से अपना लोकसभा उम्मीदवार घोषित किया है। हिमाचल प्रदेश में चार सीटों के लिए एक ही चरण में 1 जून को मतदान होगा। मंडी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र ज्यादातर पूर्व शाही परिवारों का युद्धक्षेत्र बना हुआ है और उनके वंशजों ने इस सीट के लिए हुए दो उपचुनावों सहित 19 चुनावों में से 13 में जीत हासिल की है।
2009 से 2021 तक मंडी सीट पर तीन आम चुनाव और दो उपचुनाव हो चुके हैं. इन चुनावों में कांग्रेस की उल्लेखनीय उपस्थिति रही और उसने तीन बार जीत हासिल की। 2009 के आम चुनाव में वीरभद्र सिंह और 2013 और 2021 के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा सिंह मंडी सीट से सांसद चुनी गईं। 2014 और 2019 के संसदीय चुनावों में, भाजपा विजयी हुई और राम स्वरूप शर्मा दोनों बार संसद सदस्य चुने गए। हालाँकि, 2021 में, राम स्वरूप शर्मा की आत्महत्या से दुखद मृत्यु हो गई। इसके बाद 2021 के उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस की प्रतिभा सिंह के पास चली गई। फिलहाल चार लोकसभा सीटों में से तीन पर बीजेपी का कब्जा है।
क्या कभी पीएम बने थे नेताजी बोस ?
दरअसल, ये एक बड़ा सवाल है कि क्या 1943 में बोस द्वारा गठित आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता मिलने से भारत के इतिहास की दिशा बदल सकती थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सुभाष चंद्र बोस ने भारत को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से सिंगापुर में आज़ाद हिंद सरकार के गठन का नेतृत्व किया था और खुद उस सरकार के प्रधानमंत्री बने थे। इस सरकार को जर्मनी, जापान और इटली सहित नौ देशों ने मान्यता दे दी थी। हालाँकि, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता नहीं दी थी। यह मान्यता बेहद महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसने बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिन्द फ़ौज को अंतरराष्ट्रीय वैधता और समर्थन प्रदान किया। उस सरकार का अपना बैंक था, जिसमे नोट भी छापे जाते थे, अपनी सेना थी।
हालाँकि, अफ़सोस कि, जिस नेताजी का लोहा हिटलर जैसे क्रूरतम तानाशाह ने भी माना, उन्हें अपने ही देश में गुमनाम छोड़ दिया गया। कांग्रेस नेताओं की उपेक्षा के चलते उन्हें चुनाव जीतने के बावजूद पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वे पूर्ण आज़ादी के पक्षधर थे, अंग्रेज़ों की शर्तों पर आज़ादी उन्हें मंजूर न थी। वे लड़कर आज़ादी लेना चाहते थे और वे जानते थे कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेज़ कमज़ोर पड़ गए हैं, यही समय है उन्हें अपने देश से खदेड़ने का। अंग्रेज़ भी इस बात को भांप चुके थे कि, बोस चुप नहीं बैठेंगे। इसलिए 1945 में अंग्रेज़ों ने कांग्रेस के सामने आज़ादी का प्लान रखा और बंटवारे का बीज भी बो दिया। दावा किया जाता है कि, 18 अगस्त 1945 को एक प्लेन क्रैश में नेताजी का देहांत हो गया, लेकिन इसपर काफी मतभेद हैं। कुछ लोग नेताजी की मौत में भारतीय नेताओं के मिले होने का भी आरोप लगाते हैं।
इधर भारत में अंग्रेज़ों की चाल काम कर गई थी, बंटवारे की मांग करते हुए मोहम्मद अली जिन्ना के आदेश पर 1946 में बंगाल में डायरेक्ट एक्शन डे हुआ और लाखों हिन्दू मारे गए और हज़ारों महिलाओं के सामूहिक बलात्कार हुए। इस बीच कांग्रेस समितियों द्वारा सरदार पटेल को चुने जाने के बावजूद महात्मा गांधी के दबाव में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया। ये अंग्रेज़ों के कैबिनेट मिशन प्लान 1946 का हिस्सा था कि, जो भी कांग्रेस अध्यक्ष होगा, वही पीएम बनेगा। इसके बाद नेहरू और जिन्ना ने मौन्टबेटन के साथ बैठकर उन कागज़ों पर दस्तखत किए, जिसने भारत माता के शरीर पर आरियां चला दी, बंटवारे में करीब 10 लाख लोग मारे गए, करोड़ों बेघर हो गए और लाखों लड़कियों के सामूहिक बलात्कार हुए। यही सब कारण हैं, जिसको यादकर आज भी लोग सोचते हैं कि, यदि 1943 में कांग्रेस ने नेताजी बोस की सरकार को मान्यता दे दी होती, और उनके नेतृत्व में आज़ादी की लड़ाई लड़ी होती, तो हमें अंग्रेज़ों की शर्तें मानाने की जरूरत न होती। काश, उस समय नेताजी के हाथ में कमान होती....।
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