नीरव मोदी या विजय माल्या और या फिर इनके जैसे वो लोग जो पैसा तो ले लेते है लेकिन उसे जमा नही करवाते है . बैंकों के पैसे लेकर विदेश भागने के बाद ऐसे लोगों के साथ कैसा सलूक हो, इस पर बहस गरम है. ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि ऐसे लोगों के साथ किस मुल्क में किस तरह का व्यवहार होता है.
यूं तो भारतीय बैंकों का एनपीए 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो चुका है और देश की अधिकांश टॉप कंपनियों के पास बैंकों के हजारों करोड़ रुपए का कर्ज है. लेकिन नीरव मोदी और विजय माल्या द्वारा बैंकों के पैसे लेकर विदेश भागने के बाद ऐसे लोगों के साथ कैसा सलूक हो, यह सवाल सबकी जुबान पर है.
इन सबके बीच यह जानना दिलचस्प है कि बैंकों के पैसे डकार जाने वाले नीरवों और माल्याओं के साथ किस मुल्क में किस तरह का व्यवहार होता है-
सबसे पहले हम बात करते है चीन कि
चीन में डिफॉल्टरों के ओहदे को ध्यान में रखकर कार्रवाई नहीं होती है. चाहे वे सरकारी कर्मचारी, विधायिका के लोग, सलाहकार संस्थाओं के सदस्य या देश की सबसे ताकतवर कम्युनिस्ट पार्टी का कोई प्रतिनिधि हो, वह अगर भ्रष्टाचार करता है तो उसे बख्शा नहीं जाता. देश के सुप्रीम पीपल्स कोर्ट ने 67 लाख से ज्यादा डिफॉल्टरों को काली सूची जारी करके इनको जबर्दस्त सजा देने का प्रावधान कर रखा है.
चीन की सबसे बड़ी अदालत अपनी वेबसाइट पर बेईमान लोगों के नाम और आईडी नंबर छापती हैं. डिफॉल्टर का फोन व्यस्त रहने पर ऑपरेटर यह कहता है, 'जिसे आप कॉल कर रहे हैं, उसे कर्ज न चुकाने के कारण ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया है.' डिफॉल्टर का नाम, आईडी नंबर, फोटो व उसके घर का पता अखबारों में छापा जाता है और उसकी तस्वीर टीवी में दिखाई जाती है.
बसों और लिफ्ट में उसकी तस्वीर चस्पा की जाती है. डिफॉल्टर किसी भी शहर में तीन-सितारा या उससे ज्यादा महंगे होटलों में नहीं ठहर सकते. कार या कोई वाहन बुक करने के लिए उन्हें ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. क्रेडिट कार्ड या लोन के लिए किए गए इनके आवेदन शुरुआती चरण में ही रद्द कर दिए जाते हैं.
अफ्रीकी देशों में मोबाइल का बिल ना भरने पर की जाती है सख्त कार्रवाई की जाती है
ट्रांसयूनियन क्रेडिट रिफरेंस ब्यूरो (सीआरबी) ने एक सर्वे में केन्या व अफ्रीकी देशों के बैंकों व सरकारी संस्थाओं से लोन लेकर वापस न देने वालों का आकलन किया था. इसमें 3 लाख से अधिक ऐसे लोगों पर कार्रवाई की बात सामने आई थी, जिन पर बेहद मामूली लोन बाकी थे. इनमें सरकारी दूरसंचार कंपनियों के बिल के भुगतान ना करने के करीब 6 लाख मामले दर्ज किए गए थे.
अमेरिका में डिफॉल्टर को 300 साल की सजा
चीन की तुलना में अमेरिका में बैंक डिफॉल्टरों को लेकर कानून इतना सख्त नहीं हैं, लेकिन अमेरिकी कानून ऐसे लोगों के प्रति बेहद सख्त है. अमेरिका के चर्चित रजत गुप्ता (भारतीय मूल के इंवेस्टमेंट बैंकर) मामले में आरोपी को 300 साल की सजा सुनाई गई थी. इसके अलावा अन्य मामलों में अमेरिका ऐसे लोगों या संस्थाओं को पूरी तरह प्रतिबंधित कर ठोस कानूनी कार्रवाई करता है. यूरोप में डिफॉल्टर पर 10 साल का क्रेडिट बैन
यूरोप में बड़े स्तर के बैंक डिफॉल्टर मामलों के निपटारों के लिए सख्त कानून हैं. यहां ऐसे लोगों के 10 साल के क्रेडिट, लोन रद्द कर दिए जाते हैं. आगे भी उन्हें लोन लेने में सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा नियम-कानूनों के पालन करने होते हैं.
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