ज्येष्ठ मास काफी महत्वपूर्ण मास है। हालांकि इस मास में ग्रीष्म का असर जरूर होता है लेकिन इस मास में भगवान की आराधना अधिक की जाती है। मिली जानकारी के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर निर्जला एकादशी का यह व्रत किया जाता है। इस बार यह एकादशी 6 जून को होगी। वर्षभर की एकादशियों की तुलना में इस व्रत के समान पुण्यदायी और कुछ नहीं है। यह व्रत पांडवों द्वारा किया गया था।
दरअसल भीमसेन ने इस व्रत को किया था। इसलिए इसे भीमसेनी या पाण्डवा एकादशी भी कहा जाता है। मिली जानकारी के अनुसार 4 जून दशमी तिथि को यह व्रत किया जाता है। इतना ही नहीं प्रातः के समय स्नानादि क्रिया पूर्ण कर पूजन किया जाता है। उक्त व्रत में एकादशी का व्रत सूर्योदय से द्वादशी तक किया जाता है।
व्रत के दौरान व्रत करने वाले निर्जल रहकर भगवान की आराधना करते हैं। इस पर्व पर दान करने से पुण्यफल मिलता है। दान करने के लिए किसी मिट्टी के पात्र, कलश, सुराही और धातु से बने जल के पात्र को उत्तम माना जाता है। यदि आम चाहें तो फलों में आम, खरबूजे, विद्युत पंखे आदि का दान किया जा सकता है।
यदि गर्मी से परेशान किसी व्यक्ति या फिर किसी राहगिर के लिए ठंडे जल, छबील, प्याऊ लंगर आदि बेहद पुण्यदायी हैं। इस व्रत को करने से समस्त पापों का शमन होता है। व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इतना उत्तम है कि चतुर्दशी युक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के दौरान श्राद्ध कर मनुष्य जिस फल को पाता है वह फल उसे यह व्रत कर मिलता है।
पूर्वजन्म में भगवान विष्णु का द्वारपाल था रावण
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बाबा तामेश्वरनाथ, जहाँ सबसे पहले पूजा की थी कुंती ने