नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजनीति में देश की आजादी से बाद से कांग्रेस का नब्बे के दशक तक एकक्षत्र राज हुआ करता था, किन्तु अब पार्टी की स्थिति छोटे-छोटे दलों से भी गई-गुजरी हो गई है. वहीं भाजपा, एक के बाद एक इतिहास रचती जा रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव में 37 वर्षों में पहली बार कांग्रेस 399 सीटों पर चुनाव लड़ी और केवल 2 सीटें ही जीत पाई. हार से निराश कांग्रेस ने स्थानीय निकाय MLC चुनाव का मैदान ही छोड़ दिया, जिसके कारण अब विधान परिषद में कांग्रेस जीरे पर पहुंचने वाली है. आजादी के बाद कांग्रेस की हालत राज्य में पहली बार इतनी बदतर हुई है.
बता दें कि राज्य के विधान परिषद में 100 सीटें निर्धारित हैं, जिनमें 36 स्थानीय निकाय से, 36 विधानसभा कोटे से, 8 स्नातक कोटे से, 8 शिक्षक कोटे से और 12 सदस्य गवर्नर कोटे से चुनकर आते हैं. स्थानीय निकाय की 36 MLC सीटों में से भाजपा ने 33 सीटें जीतकर अपने 66 सदस्य कर लिए है. वहीं, सपा के 17, बसपा के 4, शिक्षक दल के 2, कांग्रेस का एक, अपना दल (एस) का एक, निषाद पार्टी का एक, जनसत्ता पार्टी का एक, निर्दल समूह का एक, 3 निर्दलीय विधान परिषद सदस्य है. इसके अलावा तीन सीटें खाली हैं.
कांग्रेस के एकमात्र MLC दीपक सिंह है. दीपक सिंह वर्ष 2016 में विधानसभा कोटे से MLC चुने गए थे और अब उनका कार्यकाल इसी साल जुलाई में समाप्त हो रहा है. इसी के साथ कांग्रेस का एक भी नेता विधान परिषद में नहीं बचेगा, जो पार्टी का पक्ष उच्च सदन में रख सके. विधान परिषद में कांग्रेस वापसी की संभावनाएं भी फिलहाल नज़र नहीं आ रही है, क्योंकि न तो पार्टी के पास पर्याप्त विधायकों की तादाद है और न ही पार्टी स्थानीय निकाय कोटे की सीटों पर चुनाव लड़ी है. लिहाजा कांग्रेस का विधान परिषद में एक भी नेता नहीं रहेगा.
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