यदि यह चार चीज हो नजदीक तो मिल सकती है सफलता

यदि यह चार चीज हो नजदीक तो मिल सकती है सफलता
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सीताराम गुप्ता का कहना है की एक बच्चा ध्यान से नाली के गंदे पानी में चमकीले लाल रंग के कीड़ों को देखा जा रहा था। उसे वे कीड़े बड़े सुंदर लग रहे थे। उस बच्चे को दुख भी हो रहा था कि ये गंदे पानी में कैसे पड़े हैं। नाली के कीड़े कितने भी सुंदर क्यों न हों वे गंदे पानी में ही पैदा होते हैं और उसी से आहार ग्रहण कर जिंदा रहते हैं। वास्तव में जितने भी मनुष्येतर प्राणी हैं वे खास प्राकृतिक परिवेश में उत्पन्न होते हैं, उसी में परवरिश पाते हैं और उसी में खुश रहते हैं। कोई भी प्राणी जब तक उसका जीवन संकट में न हो, अपना परिवेश बदलने की नहीं सोचते है। लेकिन मनुष्य? मनुष्य हमेशा अपने परिवेश को बेहतर बनाने लिए तत्पर रहता है क्योंकि इसके बिना उसका विकास संभव ही नहीं।

कई लोग अत्यंत दयनीय परिस्थितियों में पैदा होते हैं। घोर अभाव, निर्धनता व बीमारी की परिस्थितियों में आंखें खोलते हैं और उसी को स्वीकार कर निश्चिंत बैठे रहते हैं। कई बार उनमें और गंदी नाली के कीड़ों की जिंदगी में कोई अंतर नहीं होता। बेशक नाली के कीड़े के लिए वह स्थिति असामान्य नहीं, लेकिन मनुष्य के लिए इसे किसी भी सूरत में सामान्य नहीं कहा जा सकता। वजह यह है कि कीड़े के सामने मात्र उसकी उदरपूर्ति का प्रश्न होता है। उसके समक्ष सामाजिक व आर्थिक विकास अथवा नैतिकता व चरित्र निर्माण की समस्या नहीं होती। इसके विपरीत मनुष्य सिर्फ उदरपूर्ति से संतुष्ट नहीं हो सकता। यह उसकी प्रकृति में नहीं है। उसके सामने उसके सर्वांगीण विकास का प्रश्न होता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ उसके लिए अनिवार्य बताए गए हैं।

बताया जा रहा है कि सभी जीवों का अपना परिवेश होता है, पर सभी जीवों की संस्कृति नहीं होती। मनुष्य इस मामले में सबसे अलग है। उसकी एक संस्कृति है जिसको अपनाकर वह सभ्य बनता है। संस्कृति के दायरे में रह कर वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ हासिल करता है। देश काल के अनुसार धर्म का पालन अनिवार्य है। धर्म जीवन को संबल प्रदान करता है, हमारी संस्कृति को बनाए रखने में सहायक होता है। वास्तव में वे सभी तत्व जो जीवन को सकारात्मकता प्रदान करते हैं, धर्म के अंतर्गत आते हैं। धर्म के साथ-साथ अर्थोपार्जन भी अनिवार्य है, लेकिन वह पूर्ण रूप से धर्मसम्मत होना चाहिए। अर्थोपार्जन में चारित्रिक या नैतिक पतन नहीं होना चाहिए।

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