कोई नेता तो नहीं गया, लेकिन 600 परिवारों की मदद के लिए आगे आया हाईकोर्ट

कोई नेता तो नहीं गया, लेकिन 600 परिवारों की मदद के लिए आगे आया हाईकोर्ट
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कोच्ची: केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार (10 दिसंबर 2024) को मुनम्बम वक्फ भूमि विवाद पर सुनवाई करते हुए वक्फ बोर्ड द्वारा जारी किए गए बेदखली नोटिस पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने जमीन मालिकों से कहा कि वे अपने स्वामित्व का दावा सिविल अदालत में पेश करें। जस्टिस अमित रावल और केवी जयकुमार की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि यह मामला भूमि स्वामित्व से जुड़ा है और तथ्यात्मक विवाद का हल सिविल कोर्ट में ही संभव है।  

मामले में वक्फ बोर्ड ने 600 से अधिक हिंदू और ईसाई परिवारों की जमीन पर दावा करते हुए बेदखली के नोटिस जारी किए थे, ये लोग अधिकतर मछली पकड़कर अपना जीवनयापन करते हैं, वे बेहद गरीब हैं। इस कार्रवाई के विरोध में पिछले एक महीने से स्थानीय किसानों और मछुआरों ने प्रदर्शन किया। वक्फ बोर्ड का दावा है कि ये जमीनें उसके अधिकार क्षेत्र में आती हैं, जबकि प्रभावित परिवारों का कहना है कि यह उनकी पुश्तैनी संपत्ति है।  

हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल अदालत में स्वामित्व के अधिकार की पुष्टि के बिना इस मामले का समाधान संभव नहीं है। अदालत ने वक्फ अधिनियम, 1995 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिका पर भी गौर किया, जिसमें इन धाराओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। फिलहाल, बेदखली पर रोक लगाई गई है, जिससे प्रभावित परिवारों को राहत मिली है।  

केरल के मछुआरों और किसानों की जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावे के बावजूद, कोई भी विपक्षी दल उनके समर्थन में सामने नहीं आया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने संभल में मस्जिद विवाद को लेकर सक्रियता दिखाई। सपा के नेता तो पत्थरबाजों से जेल में मिलने तक पहुँच गए। वहीं राहुल गांधी अपने पूरे काफिले के साथ सम्भल जाने के लिए तैयार दिखे। लेकिन जब बात केरल के मछुआरों और किसानों की आई, जिनकी आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है, तो किसी भी राजनीतिक दल ने न उनकी स्थिति पर बयान दिया और न ही उनसे मिलने की पहल की। इसका कारण स्पष्ट है: यह मामला उनके वोट बैंक की राजनीति में फिट नहीं बैठता।  

केरल का यह मामला सिर्फ एक राज्य की समस्या नहीं है। वक्फ बोर्ड द्वारा इसी तरह के भूमि दावे देश के कई हिस्सों में किए जा रहे हैं। गरीब लोग, जिनकी जमीनें खतरे में हैं, अदालत के चक्कर काटने का खर्च और समय नहीं जुटा सकते। हल्द्वानी में सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों या संभल के पत्थरबाजों को राजनीतिक समर्थन मिला, लेकिन इन मछुआरों और किसानों को अपने हक के लिए अकेले लड़ना पड़ रहा है। इस स्थिति पर कई सवाल उठते हैं:-

- क्या हर गरीब किसान और मछुआरा इतना सक्षम है कि वह अदालतों में अपने हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ सके?  
- क्यों विपक्षी दल ऐसे मुद्दों पर खामोश रहते हैं जो उनके वोट बैंक को प्रभावित नहीं करते?  
- क्या केवल मुस्लिम समुदाय के समर्थन में खड़े होना ही राजनीतिक दलों की प्राथमिकता बन गई है?  

केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में गरीबों के पक्ष में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है, लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे मामलों में गरीबों को न्याय मिल पाएगा? राजनीतिक दलों को इस बात का जवाब देना होगा कि वे केवल चुनिंदा मामलों में ही सक्रियता क्यों दिखाते हैं। वोट बैंक की राजनीति गरीबों की समस्याओं को अनदेखा करने का कारण नहीं बननी चाहिए।

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