चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में इस बात पर खेद व्यक्त किया कि अब तक विधायकों और सांसदों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को अनिवार्य नहीं किया गया है। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा विधायकों और सांसदों के लिए न्यूनतम योग्यता को अनिवार्य न करने पर जताए गए खेद को अब तक दूर नहीं किया गया है।
जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु ने इस मामले में संविधान सभा में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के 26 नवंबर 1949 को दिए गए संबोधन का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून बनाने वालों की बजाय कानून को प्रशासित करने वालों के लिए उच्च योग्यता पर जोर देना सही नहीं है। कोर्ट ने इस संदर्भ में कहा कि लगभग 75 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी सांसद या विधायक बनने के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। यह टिप्पणी एक आपराधिक शिकायत को खारिज करते हुए की गई, जिसमें आरोप था कि बीजेपी नेता और पूर्व विधायक राव नरबीर सिंह ने अपने नामांकन पत्र में शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी दी थी। RTI कार्यकर्ता हरिंदर ढींगरा ने आरोप लगाया था कि नरबीर सिंह ने 2005 में दावा किया था कि उन्होंने हिंदी विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से स्नातक किया था, जबकि यूजीसी ने जानकारी दी थी कि ऐसा कोई विश्वविद्यालय नहीं है।
कोर्ट ने शिकायत को खारिज करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट ने सही कारणों के आधार पर यह निर्णय लिया था। अदालत ने पाया कि नरबीर सिंह के पास 2005 और 2014 में नामांकन दाखिल करते समय स्नातक की डिग्री थी और इसलिए उन्हें गलत घोषणा करने का दोषी नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि आज भी विधायकों और सांसदों के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं है। इस मामले ने यह सवाल भी उठाया कि जब एक छोटी सी नौकरी के लिए भी शैक्षणिक योग्यता मांगी जाती है, तो फिर किसी विधायक या सांसद के लिए न्यूनतम योग्यता का प्रावधान क्यों नहीं है? आखिरकार, इन्हीं विधायकों और सांसदों में से कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनता है, और क्या कोई अयोग्य व्यक्ति सही तरीके से राज्य या देश चला सकता है?
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