नई दिल्ली: जैसा कि सभी को पता हैं कि कल बेंगलुरु में वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की घर में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस वारदात ने एक बार फिर चौथे स्तम्भ को लेकर व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लग रहे हैं. यूँ तो प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता हैं. लेकिन जब कतिपय लोगों के निहित स्वार्थों में सच्चे पत्रकार अवरोध पैदा करते है तो उनका हश्र गौरी लंकेश की तरह कर दिया जाता हैं. गौरी एक स्वाभिमानी महिला पत्रकार थीं जो अपनी स्पष्टवादिता के लिए जानी जाती थीं. वैसे पत्रकारों पर हमले की यह कोई पहली घटना नहीं हैं. काँटों भरी इस राह पर कई लोगों ने अपनी जान गंवाई हैं.आइये उन पर नजर डालते हैं.
उल्लेखनीय हैं कि हमारे देश के संविधान में पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है. लेकिन कल बेंगलुरु में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या ने इस बात को फिर साबित कर दिया कि इस पेशे से जुड़े लोगों का जीवन खतरे में है. इसके पहले भी पत्रकारों को निशाना बनाया गया था. 13 मई 2016 को सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई थीं. इसी तरह मई 2015 में मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले को कवरेज करने गए विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मेघनगर के पास मौत हो गई थीं. मध्य प्रदेश में ही जून 2015 में बालाघाट जिले में अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला दिया गया था. ऐसे ही 2015 में ही उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया था.
देखा जाए तो देश भर में पत्रकारों की हत्या के कई मामले है उनमे से कुछ का ही उल्लेख यहाँ संभव हैं. महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की भी 20 अगस्त 2013 को मंदिर के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई थीं इस मामले ने भी खूब तूल पकड़ा था. इसी तरह आंध्रप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की 26 नवंबर 2014 को हत्या कर दी गई. ऐसे ही पत्रकार साई रेड्डी की छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर दी थी.हाल ही में चर्चित डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम केखिलाफ आवाज बुलंद करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की सिरसा में 21 नवंबर 2002 को उनके दफ्तर में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी गई थीं. पत्रकारों की हत्या का यह सिलसिला अब भी जारी हैं.
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