नई दिल्ली: भारत में लंबे समय से यह धारणा बनी हुई है कि जज का बेटा जज बनेगा या फिर किसी जज का करीबी रिश्तेदार ही इस पद पर नियुक्त होगा। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में ऐसे कई जज हैं, जिनके पिता, दादा या अन्य करीबी रिश्तेदार भी न्यायपालिका में उच्च पदों पर रहे हैं। कुछ मामलों में तो एक ही परिवार की कई पीढ़ियां न्यायिक पदों पर रही हैं। इसकी वजह यह है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम सिस्टम के तहत किसे जज बनाया जाएगा, इसका फैसला कॉलेजियम करता है। सरकार सिर्फ उन्हीं नामों को मंजूरी देती है, जिन्हें कॉलेजियम सिफारिश करता है।
कॉलेजियम प्रणाली पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं कि इसमें पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी है। आरोप लगाया जाता है कि इसमें शामिल जज अक्सर अपने रिश्तेदारों और करीबी वकीलों के नाम आगे बढ़ाते हैं। इससे कई बार योग्य और पहली पीढ़ी के वकील इस प्रक्रिया में पीछे रह जाते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने इस प्रथा को बदलने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है। कॉलेजियम के सदस्यों, जिसमें मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, सूर्यकांत, हृषिकेश रॉय और ए.एस. ओका शामिल हैं, ने पहली बार उन वकीलों और न्यायिक अधिकारियों से सीधे बातचीत की, जिन्हें हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी।
कॉलेजियम में यह प्रस्ताव भी रखा गया कि उन वकीलों को जज बनाने की सिफारिश न की जाए, जिनके माता-पिता या करीबी रिश्तेदार पहले से सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं। इस प्रस्ताव को कॉलेजियम के कुछ अन्य सदस्यों का समर्थन भी मिला। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इससे पहली पीढ़ी के वकीलों को मौका मिलेगा और देश की अदालतों में विविधता और अलग-अलग समुदायों का बेहतर प्रतिनिधित्व हो सकेगा।
इस प्रक्रिया में इलाहाबाद, बॉम्बे और राजस्थान हाईकोर्ट के जजों के लिए सिफारिश किए गए उम्मीदवारों से सुप्रीम कोर्ट के जजों ने सीधे बात की। यह पहली बार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों का मूल्यांकन सिर्फ दस्तावेजों और रिपोर्ट्स के आधार पर नहीं, बल्कि उम्मीदवारों की सूटेबिलिटी और व्यवहार का व्यक्तिगत आकलन करते हुए किया।
हालांकि, कॉलेजियम के इस नए कदम पर भी बहस जारी है। कुछ जजों का मानना है कि अगर पूर्व जजों के रिश्तेदार जज बनने से वंचित होते हैं, तो इसका उन पर कोई खास असर नहीं होगा, क्योंकि वे पहले से ही सफल वकील हैं और अपने पेशे में अच्छा नाम और पैसा कमा रहे हैं। लेकिन इससे नई पीढ़ी के योग्य उम्मीदवारों को संविधानिक अदालतों में अपनी जगह बनाने का मौका मिलेगा। यह बदलाव अगर पूरी तरह लागू होता है, तो यह न्यायपालिका में पारदर्शिता और समान अवसर की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे यह भी उम्मीद की जा रही है कि जजों के चयन में परिवारवाद और पक्षपात की धारणा को खत्म किया जा सकेगा।