पुजारी की हत्या, हिन्दुओं का पलायन और मुस्लिम बहुल इलाका, मुरादाबाद में मिला 44 साल से बंद मंदिर

पुजारी की हत्या, हिन्दुओं का पलायन और मुस्लिम बहुल इलाका, मुरादाबाद में मिला 44 साल से बंद मंदिर
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के कई जिलों में दशकों से बंद पड़े मंदिरों का मिलना एक गंभीर सच्चाई से देश को रूबरू करा रहा है, वो ये कि जो आज बांग्लादेश में हो रहा है, वो भारत में कई बार, कई जगह हो चूका है। हिन्दू मंदिरों पर हमले हुए हैं, बहुसंख्यक समुदाय को सुरक्षा के आभाव में पलायन करना पड़ा है और वो इस्लामी हिंसा का शिकार हुए हैं।  इन मंदिरों की स्थिति, वहां के इतिहास और हिन्दू समुदाय के साथ हुए अत्याचारों की कहानी खुद बयान कर रही है। 

 

संभल, वाराणसी, अलीगढ़, बुलंदशहर के बाद अब मुरादाबाद में भी 44 साल से बंद पड़ा गौरी शंकर मंदिर खोजा गया है। नगर निगम की टीम ने जब गर्भगृह की खुदाई की, तो शिवलिंग और कई खंडित मूर्तियां मलबे में दबी हुई मिलीं। यह मंदिर 1980 के हिन्दू-मुस्लिम दंगों के बाद से बंद था। उस समय मंदिर के पुजारी की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद मंदिर को मलबा डालकर पूरी तरह से बंद कर दिया गया। पुजारी के पोते ने हाल ही में प्रशासन से गुहार लगाई, जिसके बाद नगर निगम और पुलिस ने मिलकर मंदिर की सफाई और खुदाई का काम शुरू किया। गर्भगृह से नंदी, शिवलिंग, गणेश, कार्तिकेय और हनुमान की खंडित मूर्तियां बरामद हुई हैं। अब प्रशासन इसे दोबारा पूजा-अर्चना के योग्य बनाने के लिए काम कर रहा है।  

हालाँकि, मुरादाबाद का यह मंदिर अकेला उदाहरण नहीं है। इससे पहले संभल, वाराणसी, अलीगढ़, और बुलंदशहर के खुर्जा इलाके में भी बंद पड़े मंदिर मिले हैं। गौर करने वाली बात ये है कि, यह सभी मंदिर मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थित हैं, यही इलाके पहले हिन्दू बहुल हुआ करते थे, लेकिन हिन्दुओं के पलायन के बाद यहाँ माहौल बदल गया। इन घटनाओं में एक और बात जो समान है, वह यह कि ये तमाम मंदिर हिन्दू-मुस्लिम दंगों के बाद बंद हुए। हर बार हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए, सुरक्षा और समर्थन के अभाव में हिन्दुओं को अपनी जमीन और घर छोड़कर पलायन करना पड़ा, और ये इलाके धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल हो गए।  

दंगों और हिंसा के बाद हिन्दू समुदाय अपने पूजा स्थलों को छोड़कर चले गए, और मूर्ति पूजा को पाप मानने वाला मुस्लिम समुदाय उन मंदिरों की देखभाल करने से रहा। परिणामस्वरूप, ये मंदिर उजाड़ और वीरान हो गए। दशकों से इन जगहों पर कोई पूजा-अर्चना नहीं हुई, और अब इन मंदिरों को खंडहरों से निकाला जा रहा है। यह सच्चाई उन समयों की सरकारों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। जब दंगे हुए, तो हिन्दुओं को सुरक्षा देने में प्रशासन नाकाम रहा। वोट बैंक की राजनीति के चलते, हिन्दुओं के पलायन को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। उल्टा, यह झूठा राग अलापा जाता रहा कि 'मुस्लिम समुदाय पर अत्याचार' हो रहा है।  

आज जब इन मंदिरों को दोबारा खोला जा रहा है, तो यह सवाल उठता है कि उन समयों के गुनहगारों को सजा क्यों नहीं मिली? जो लोग दंगों के लिए जिम्मेदार थे, क्या उन्हें कभी न्याय के कटघरे में लाया गया? इन मंदिरों का मिलना इस बात का सबूत है कि कभी इन इलाकों में हिन्दुओं की समृद्ध संस्कृति और परंपराएं जीवंत थीं। इन मंदिरों में कई पीढ़ियों ने पूजा-अर्चना की, मन्नतें मांगी, लेकिन इस्लामी हिंसा और पलायन के कारण ये स्मृतियां समय के साथ मिट गईं।  

यह घटनाएं न केवल उत्तर प्रदेश की, बल्कि पूरे देश की उस सच्चाई को उजागर करती हैं, जिसे लंबे समय तक दबाया गया। हर बार दंगों के बाद हिन्दू समुदाय को पीछे हटने पर मजबूर किया गया, और उनकी भूमि, उनके धार्मिक स्थल धीरे-धीरे उनकी पहुंच से बाहर होते गए। आज इन मंदिरों को देखकर सिर्फ इतिहास नहीं जागता, बल्कि उन लाखों हिन्दुओं की पीड़ा भी सामने आती है, जिन्होंने अपनी जड़ों से कटकर एक नई जगह पर शुरुआत करनी पड़ी। यह घटनाएं देश के इतिहास में प्रशासन की नाकामी और पक्षपातपूर्ण राजनीति का एक कड़वा अध्याय जोड़ती हैं। क्या हिन्दू समुदाय उन सरकारों का कभी समर्थन करेगा, जिनके राज में उनके समाज को हिंसा झेलनी पड़ी और अपना सबकुछ छोड़कर पलायन करना पड़ा?

इससे एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर हिन्दू समुदाय कहाँ तक भागेगा? मुस्लिम आबादी तो बढ़ती जा रही है, उसमे घुसपैठिए भी शामिल हैं, कल को धीरे-धीरे यही पूरे भारत में होगा, तो हिन्दू समुदाय अपनी पुण्यभूमि छोड़कर किस देश में शरण लेगा? और क्या उसे शरण मिलेगी भी? जब अपने ही देश में उसके घर-मंदिर सुरक्षित नहीं हैं, उसे बार-बार पलायन करना पड़ता है, तो किसी दूसरे देश में क्या वो अपनी आस्था का पालन कर सकेगा?

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