ढाका: इस्लामी मुल्क बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। हाल ही में क्रिसमस के शुभ अवसर पर, जब पूरी दुनिया खुशियाँ मना रही थी, बांग्लादेश के बंदरबन जिले के लामा उपजिला में ईसाई समुदाय के 17-19 घरों को जला दिया गया। यह घटना न केवल मानवता पर हमला है, बल्कि यह साबित करती है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को डर और असुरक्षा के साये में जीना पड़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, यह दर्दनाक घटना 25 दिसंबर की शाम उस समय हुई, जब गाँव के सभी लोग दूसरे गाँव के चर्च में क्रिसमस की प्रार्थना करने गए थे। जब वे रात करीब 12:30 बजे अपने गाँव लौटे, तो देखा कि उनके घर जलकर राख हो चुके थे। बांस और घास-फूस से बने ये घर पलभर में आग की लपटों में घिर गए थे। पीड़ितों में से एक, गुंगामणि त्रिपुरा ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, “हमारे घर पूरी तरह जलकर खाक हो गए हैं। अब हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है।”
Now, Christian minorities under attack in #Bangladesh.
— Hindu Voice (@HinduVoice_in) December 26, 2024
On the night of 24/12/2024, Islamists set ablaze 16 homes of the Christian minorities in #Bandarban district.
They alleged that Islamists have been trying to evict them from their lands for a long time.
On that night,… pic.twitter.com/Pdp7ssirAk
स्थानीय निवासियों ने बताया कि इस हमले से पहले उन्हें कई बार धमकियाँ मिल चुकी थीं। यही कारण था कि चर्च जाने के दौरान वे गाँव में किसी को भी नहीं छोड़ते थे, ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। लेकिन, हमलावरों ने उनके खाली घरों को निशाना बनाकर पूरी तरह नष्ट कर दिया। ईसाई समुदाय के लोगों का कहना है कि इस हमले में उनका लगभग 15 लाख टका (बांग्लादेशी करंसी) का नुकसान हुआ है। उनके घरों में रखा सारा सामान, अनाज, कपड़े और जरूरी दस्तावेज जलकर राख हो गए।
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस और प्रशासन ने मौके का दौरा किया। स्थानीय प्रशासन ने राहत के तौर पर चावल, दाल, तेल और कंबल दिए हैं। लेकिन पीड़ितों का सवाल है कि वे रहेंगे कहाँ? उनके लिए घरों का पुनर्निर्माण कब और कैसे होगा, इस पर कोई जवाब नहीं मिला है। त्रिपुरा समुदाय के ये ईसाई लोग लामा सराय के एसपी गार्डन में रहते थे। यह जमीन पहले बांग्लादेश की हसीना सरकार में उच्च पद पर रहे बेनजीर अहमद के कब्जे में थी। लेकिन 5 अगस्त को तख्तापलट के बाद बेनजीर अहमद के परिवार को यह जगह छोड़नी पड़ी। इसके बाद त्रिपुरा समुदाय ने दावा किया कि यह उनकी पुरखों की जमीन है, जिसे उनसे जबरन छीना गया था।
हालांकि, इस दावे के बावजूद, त्रिपुरा समुदाय के लोगों को लगातार धमकियाँ दी जाती रहीं और आखिरकार क्रिसमस के दिन इस हमले को अंजाम दिया गया। यह घटना साफ दिखाती है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए रहना आसान नहीं है। आए दिन हिंदू, बौद्ध और ईसाई समुदायों को हिंसा और उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है। यह केवल धार्मिक असहिष्णुता नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश है, ताकि इन समुदायों को डराकर उनके घर-बार से बेदखल कर दिया जाए।
अक्सर देखा गया है कि बांग्लादेश में जब भी अल्पसंख्यक अपने हक की बात करते हैं, तो उन्हें या तो धमकियाँ दी जाती हैं या फिर उनके खिलाफ हिंसा भड़काई जाती है। त्रिपुरा समुदाय के लोगों के साथ भी यही हुआ। पहले उन्हें डराया गया, फिर उनके घर जलाए गए। हालांकि प्रशासन ने राहत सामग्री देकर अपने कर्तव्य की पूर्ति कर दी, लेकिन असली सवाल यह है कि इन अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम कब उठाए जाएंगे? क्या केवल कंबल और चावल देने से उनके टूटे घर और सपने वापस आ जाएंगे?
बांग्लादेश सरकार को यह समझना होगा कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा केवल एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का हिस्सा है। अगर इस तरह के हमलों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो अल्पसंख्यक समुदाय पूरी तरह असुरक्षित महसूस करने लगेगा और अंततः विस्थापन का शिकार हो जाएगा। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित भविष्य केवल एक सपना बनकर रह गया है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत है, ताकि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और उन्हें न्याय मिल सके।
क्रिसमस के मौके पर ईसाई समुदाय के घर जलाना केवल धार्मिक असहिष्णुता का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह उस कट्टरपंथी इस्लामी मानसिकता का प्रतिबिंब है, जो शांति और सह-अस्तित्व में विश्वास नहीं रखती। बांग्लादेश सरकार को चाहिए कि वह इस घटना के दोषियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर कड़ी सजा दे, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।