नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद आरके चौधरी द्वारा हाल ही में इसे राजशाही का प्रतीक बताए जाने के बाद चल रहे राजनीतिक विवाद के बीच गुरुवार को संसद में 'सेंगोल' (Sengol) को प्रमुखता मिली। सपा सांसद चौधरी ने कहा कि, "संविधान लोकतंत्र का प्रतीक है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने संसद में सेंगोल को स्थापित किया। 'सेंगोल' का अर्थ है 'राज-दंड' या 'राजा का डंडा'। राजसी व्यवस्था को समाप्त करने के बाद देश स्वतंत्र हुआ। क्या देश 'राजा के डंडे' से चलेगा या संविधान से? मैं मांग करता हूं कि संविधान को बचाने के लिए सेंगोल को संसद से हटाया जाए।" सपा सांसद ने कहा कि, सेंगोल हटाकर उसकी जगह संविधान रखा जाए, जबकि संविधान की मूल प्रतियां संसद में पहले से मौजूद हैं। जिन्हे हीलियम के विशेष बक्सों में पूरी सावधानी और सम्मान के साथ सहेजकर रखा गया है।
भाजपा नेता सीआर केसवन ने चौधरी की टिप्पणी को अपमानजनक और बेतुका बताया। उन्होंने कहा कि, "आरके चौधरी की टिप्पणी अपमानजनक और बेतुकी है। उन्होंने लाखों भक्तों का अपमान किया है। उन्होंने संसद की पवित्रता को भी कमतर आंका है। उन्होंने राष्ट्रपति का भी अपमान किया है। लेकिन समाजवादी पार्टी के सांसद से आप इससे बेहतर क्या उम्मीद कर सकते हैं।" वहीं, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने पूछा कि जब सदन में सेंगोल की स्थापना हो रही थी, तब सपा के सांसद क्या कर रहे थे? उन्होंने कहा कि, "जब सेंगोल की स्थापना हुई, तब भी समाजवादी पार्टी सदन में थी, उस समय उसके सांसद क्या कर रहे थे?"
केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा ने कहा कि सपा नेताओं को संविधान और संसदीय परंपराओं को देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि, "समाजवादी पार्टी के सांसद जो यह कह रहे हैं, उन्हें पहले संसदीय परंपराओं को जानना चाहिए और फिर बोलना चाहिए। और वे ऐसी चीज को हटाने की बात कर रहे हैं, जो भारत के स्वाभिमान का प्रतीक है। मुझे लगता है कि उन्हें कहीं न कहीं संविधान और संसदीय परंपराओं को देखना चाहिए।"
लालू प्रसाद यादव की बेटी और RJD सांसद मीसा भारती ने कहा कि सेंगोल को हटाया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक लोकतांत्रिक देश है। भारती ने कहा कि, "इसे हटाया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक लोकतांत्रिक देश है। सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखा जाना चाहिए, जहां लोग आकर इसे देख सकें।" इसकी प्रतिक्रिया में भाजपा सांसद खगेन मुर्मू ने आरके चौधरी के बयान पर कहा कि इन लोगों (विपक्ष) को कोई दूसरा काम नहीं है। इन्होंने संविधान के बारे में लोगों को भ्रमित किया है। ये लोग संविधान को मानते ही नहीं हैं।
भाजपा सांसद महेश जेठमलानी ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी, उन्होंने कहा कि सेंगोल राष्ट्र का प्रतीक है। सेंगोल को पूरे सम्मान के साथ यहाँ स्थापित किया गया था, अब उसे कोई नहीं हटा सकता। केंद्रीय मंत्री और RLD नेता जयंत चौधरी ने कहा कि ये (विपक्ष) के लोग यही सब काम करते हैं, ये देश का सर्वोच्च सदन है। ये लोग बस चर्चाओं में बने रहने के लिए ऐसी सस्ती बातें करते हैं। संविधान को हम सभी मानते हैं, अकेले सपा ने संविधान का ठेका नहीं ले रखा है।
वहीं, सपा सांसद आरके चौधरी के बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री और LJP नेता चिराग पासवान ने अपने बयान में कहा कि , "इनके क्षेत्र की जनता ने इन्हे काम करने के लिए चुना है और यहां संसद में आकर ये लोग केवल विवाद खड़ा करते हैं। ये लोग सकारात्मक राजनीति कर सकते हैं, लेकिन ये लोग केवल बंटवारे की राजनीति करते हैं।
देश की आज़ादी और सेंगोल का उससे संबंध :-
बता दें कि, संसद में स्थापित किए गए सेंगोल का आधुनिक इतिहास भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है, जब प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल सौंपा गया था। वहीं, प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो सेंगोल का संबंध भारत के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले चोल राज शासन से जुड़ता है, जहां सत्ता का उत्तराधिकार सौंपते हुए पूर्व राजा, नए बने राजा को सेंगोल सौंपता था और राज्य को न्यायोचित तरीके से चलाने का निर्देश देता था। यह सेंगोल राज्य का उत्तराधिकार सौंपे जाने का जीता-जागता प्रमाण माना जाता है और राष्ट्र के प्रति समर्पण भी। चोल राजवंश ने 1,500 से अधिक वर्षों तक शासन किया, जिसने उन्हें विश्व इतिहास में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक बना दिया। इनके शासन की शुरुआत 300 ईसा पूर्व से मानी जाती है। भारत के दक्षिण भाग से लेकर आज के बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, कंबोडिया, वियतनाम तक चोल साम्राज्य फैला हुआ था। थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया आज इस्लामी देश बन गए, लेकिन वहां आज भी श्री राम, हनुमान जी, और अन्य देवी देवताओं की बड़ी बड़ी मूर्तियां विद्यमान हैं, जिसके पीछे कारण चोल शासन ही है। इंडोनेशिया को सबसे अधिक आबादी वाला मुस्लिम मुल्क माना जाता है, लेकिन वहां के नेशनल TV पर हर दिन रामायण का प्रसारण होता है। इसी चोल वंश ने 2000 वर्ष पूर्व कावेरी नदी पर एक बाँध बनाया था, जिसे दुनिया का पहला ऐसा बाँध माना जाता है, जो आज भी सुचारु रूप से काम कर रहा है। सेंगोल का संबंध भारत के उस गौरवमयी इतिहास के साथ भी है।
28 मई, 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पारंपरिक पूजा करने के बाद नए संसद भवन में अध्यक्ष की कुर्सी के बगल में लोकसभा कक्ष में ऐतिहासिक सेंगोल स्थापित किया। अधीनम द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को सौंपे गए इस सेंगोल को पहले भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की रात को स्वीकार किया था। रामायण-महाभारत के कथा प्रसंगों में भी इस प्रकार से उत्तराधिकार सौंपे जाने के ऐसे वर्णन मिलते रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में राजतिलक होना, राजमुकुट पहनाना सत्ता हस्तांतरण के प्रतीकों के रूप में इस्तेमाल होता है, इसी के साथ राजा को धातु की एक छड़ी भी सौंपी जाती थी, जिसे धर्मदंड और राजदंड कहा जाता था। इसका वर्णन महाभारत में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के दौरान भी दिखाई देता है। जहां शांतिपर्व में इसके उल्लेख की बात करते हुए कहा जाता है कि 'राजदंड राजा का धर्म है, दंड ही धर्म और अर्थ की रक्षा करता है।'
राजतिलक और राजदंड की वैदिक रीतियों में एक प्राचीन पद्धति का वर्णन मिलता है, जिसके मुताबिक राज्याभिषेक के समय एक पद्धति है। शासक जब सत्ता संभालता है, तो वो तीन बार ‘अदण्ड्यो: अस्मि’ कहते हैं, तब राजपुरोहित उसे पलाश दंड से मारता हुआ कहते हैं कि ‘धर्मदण्ड्यो: असि’। शासक के कहने का अर्थ होता है कि, वो खुद अदंड्या है, उसे दंड नहीं दिया जा सकता। जिसके बाद राजपुरोहित उन्हें सांकेतिक तौर पर मारते हुए कहते हैं कि, ये धर्मदंड आपको भी दंड देने का अधिकार देता है, यदि शासक गलत हो, तो वो भी दंडनीय है। ये कहते हुए राजपुरोहित शासक को दंड थमाता है और न्यायोचित राज्य करने के निर्देश देता है। इस प्रकार ये धर्मदंड, शासक की निरंकुशता पर अंकुश लगाने का प्रतीक भी रहा है। सिर्फ, चोल साम्राज्य ही नहीं, मौर्या, गुप्त और विजयनगर साम्राज्य में भी धर्मदंड और राजदंड का जिक्र मिलता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से एक सवाल किया था: "ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किस समारोह का पालन किया जाना चाहिए?" इस प्रश्न ने नेहरू को वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी (राजाजी) से परामर्श लिया। राजाजी ने चोल कालीन समारोह का प्रस्ताव दिया, जहां एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता का हस्तांतरण उच्च पुरोहितों की उपस्थिति में पवित्रता और आशीर्वाद के साथ पूरा किया जाता था। राजाजी ने तमिलनाडु के तंजावुर जिले में शैव संप्रदाय के धार्मिक मठ - तिरुवावटुतुरै अधिनाम से संपर्क किया। तिरुवावटुतुरै अधिनाम 500 वर्ष से अधिक पुराना है और पूरे तमिलनाडु में 50 मठों को संचालित करता है। अधीनम के नेता ने तुरंत पांच फीट लंबाई के 'सेंगोल' को तैयार करने के लिए चेन्नई में सुनार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को नियुक्त किया।
वुम्मिदी बंगारू चेट्टी ने सेंगोल तैयार करके अधीनम के प्रतिनिधि को दे दिया। अधीनम के नेता ने वह सैंगोल पहले लॉर्ड माउंटबेटन को दे दिया। फिर उनसे वापस लेकर 15 अगस्त की तारीख 1947 के शुरू होने से ठीक 15 मिनट पहले स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दे दिया। लोकप्रिय पुस्तक "फ्रीडम एट मिडनाइट" में, लेखकों ने उल्लेख किया है कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, दो हिंदू संन्यासी एक प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए प्रधानमंत्री नेहरू को स्वर्ण राजदंड, 'सेंगोल' सौंपने आए थे, जिसमें हिंदू संतों ने भारत के शासक अपनी शक्ति के प्रतीकों, आशीर्वाद और न्यायोचित शासन करने के निर्देशों के साथ ये दंड सौंपा था।
कई अलग अलग रिपोर्ट्स में सेंगोल शब्द की उत्पत्ति तमिल शब्द 'सेम्मई' से बताई गई है। सेम्मई का अर्थ है 'नीतिपरायणता', यानि सेंगोल को धारण करने वाले पर यह भरोसा किया जाता है कि शासक नीतियों का पालन करेगा और जनता के साथ न्यायोचित व्यव्हार करेगा। यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत सजा देने का अधिकारी बनाता था। हालाँकि, ये यदि राजशाही का प्रतीक होता, तो लोकशाही के प्रबल समर्थक, हमारा संविधान बनाने वाले बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर और तत्कालीन विद्वान नेता उसी समय इसका विरोध करते, जब ये नेहरू जी को सौंपा जा रहा था।
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