नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा और उसके अलग संविधान तथा अलग झंडे को मान्यता देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ याचिकाओं पर 2 अगस्त से रोज़ाना सुनवाई करने का फैसला लिया है। मोदी सरकार के उस फैसले को 20 से अधिक याचिकाओं में चुनौती दी गई है। बता दें कि अनुच्छेद 370 हटने के तीन वर्षों के बाद शीर्ष अदालत में इस मामले पर सुनवाई हो रही है। इससे पहले 2020 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की थी।
अब इन याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच जजों की पीठ सुनवाई कर रही है। इसमें न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं। बता दें कि एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 हटाने के फैसले का पक्ष रखते हुए अपना हलफनामा अदालत में दाखिल किया था। हलफनामे में कहा है कि जम्मू कश्मीर बीते तीन दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा था, इसको खत्म करने के लिए 370 हटाना ही एकमात्र विकल्प था। केंद्र सरकार ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ घाटी में जीरो-टॉलरेंस की नीति अख्त्यार की जा रही है।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि आज कश्मीर में स्कूल, कॉलेज, उद्योग सहित तमाम आवश्यक संस्थान सामान्य रूप से चल रहे हैं। प्रदेश में औद्योगिक विकास हो रहा है और डरकर जी रहे लोग सुकुन से जी रहे हैं। केंद्र ने कोर्ट को आंकड़े बताते हुए अपने हलफनामे में कहा था कि आतंकवादी-अलगाववादी एजेंडे के तहत वर्ष 2018 में 1767 संगठित पत्थर फेंकने की घटनाएं हुई, जो 2023 में मौजूदा तारीख तक जीरो हैं। केंद्र सरकार ने आगे कहा कि वर्ष 2018 में 52 बंद और हड़ताल हुईं, जो काफी दिनों तक चलीं और साल 2023 में आज की तारीख तक शून्य हैं। केंद्र सरकर ने आगे बताया कि एंटी-टेरर एक्शन का रिजल्ट भी घाटी में देखने को मिला है, जिससे आतंकियों के इको-सिस्टम को भारी आघात लगा है। सरकार ने बताया कि घाटी में आतंकी भर्ती में भी भारी गिरावट आई है। यह आंकड़ा वर्ष 2018 में 199 था, जो साल 2023 में आज की तारीख तक गिरकर 12 पहुंच गया है।