लखनऊ: सहारनपुर के देवबंद स्थित दारुल उलूम प्रबंधन ने महिलाओं के संस्थान में प्रवेश पर लगा बैन हटा लिया है। मई में यह बैन इस कारण से लगाया गया था कि परिसर में आने वाली महिलाएं फोटो खींचती थीं और सोशल मीडिया के लिए रील बनाती थीं, जिससे छात्रों की पढ़ाई में बाधा आ रही थी और संस्थान की छवि प्रभावित हो रही थी। अब इस प्रतिबंध को हटा दिया गया है, लेकिन इसके साथ कुछ तालिबानी शर्तें जोड़ी गई हैं। तालिबानी इसलिए, क्योंकि अफगानिस्तान में शासन कर रहे तालिबान ने भी महिलाओं पर इसी तरह के प्रतिबंध और नियम लगा रखे हैं।
दारूल उलूम के फैसले के अनुसार, अब महिलाएं अंदर प्रवेश तो कर सकती हैं, लेकिन अकेले नहीं, उन्हें अपने शौहर को साथ लाना होगा। साथ ही इसके लिए दो घंटे का विजिटर पास अनिवार्य होगा। परिसर में किसी भी प्रकार की फोटो या वीडियो बनाने की अनुमति नहीं होगी, और वहां बैठकर खाना खाने पर भी रोक लगाई गई है। इससे पहले, दारुल उलूम के मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा था कि यह बैन उन वीडियो और रील्स के कारण लगाया गया था जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे थे। इन गतिविधियों से संस्थान की छवि पर नकारात्मक असर पड़ रहा था और छात्रों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हो रही थी।
बता दें कि, दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 31 मई 1866 को हुई थी, और इसके संस्थापकों में मुहम्मद कासिम नानौतवी, फजलुर रहमान उस्मानी और सैय्यद मुहम्मद आबिद शामिल थे। महमूद देवबंदी यहां के पहले शिक्षक थे और महमूद हसन देवबंदी पहले छात्र बने थे। अक्टूबर 2020 में मौलाना अरशद मदनी को इसका प्रिंसिपल और मौलाना अबुल कासिम नोमानी को वरिष्ठ हदीस प्रोफेसर नियुक्त किया गया था। हालाँकि, ये संस्थान काफी विवादित भी रहा है, यहाँ से अनेकों बार आतंकवादी पकड़े गए हैं और कई आतंकी दारूल उलूम से इस्लामी तालीम हासिल कर चुके हैं।
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