असम में रह रहे लोगों को लेकर एनआरसी की लिस्ट आ गई है। इस लिस्ट में 40 लाख लोगों को भारत का नागरिक नहीं माना गया है। लिस्ट जारी होते ही राजनीतिक पार्टियों ने इन लोगों की नागरिकता को लेकर तरह—तरह के सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी लिस्ट जारी होते ही अपना बंगाल राग अलापना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि ये लोग भारत के नागरिक हैं, जबकि सरकार जानबूझकर इन्हें टारगेट कर रही है और देश से बाहर निकालने की कोशिश में लगी हुई है। वहीं सुब्रमण्यम स्वामी ने लिस्ट आते ही कहा कि ये लोग भारतीय नहीं है, तो इन्हें देश से बाहर खदेड़ दिया जाना चाहिए। ममता बनर्जी की पार्टी ने संसद में भी इस मामले को लेकर हंगामा किया। इस मामले में गृहमंत्री ने कहा कि एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट किया जा रहा है, इसलिए इस पर सवाल उठाकर लोगों में डर न फैलाएं और जिनका नाम नहीं है, वह एनआरसी आॅफिस जाकर फॉर्म भर सकते हैं।
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अब बात आती है कि आखिर एनआरसी को लेकर इतना बबाल क्यों हो रहा है। दरअसल, चुनाव आने वाले हैं और इसे देखते हुए ही राजनीतिक दल सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहते। जहां तृणमूल कांग्रेस बांग्लाभाषी को लेकर इन नागरिकों को अपना वोट बैंक बनाना चाहती है, वहीं बीजेपी भी नहीं चाहती कि चुनाव से पहले कोई बड़ा हंगामा हो, इसलिए उसने लिस्ट में नाम न आने वाले लोगों को शांत करने के लिए फॉर्म भरकर अपना नाम अपडेट कराने का झुनझुना पकड़ाने की कोशिश की है।
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ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि ये लोग जो असम में इतने सालों से रह रहे हैं, ये हैं कौन? अगर ये बाहरी हैं और हमारे देश में जबरन घुस आए हैं, तो इन्हें अब तक क्यों देश के अधिकार मिल रहे थे और अगर ये भारतीय हैं, तो फिर क्यों इनको नागरिकता नहीं दी गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इनमें से अधिकांश के पास भारत की नागरिकता पाने के सभी दस्तावेज मौजूद हैं। ऐसे में सवाल वही है कि जब दस्तावेज हैं, तो इन्हें भारतीय क्यों नहीं माना जा रहा है और अगर दस्तावेज फर्जी हैं, तो इन पर कोई कार्रवाई अब तक क्यों नहीं की गई?
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