एनआरसी को लेकर लगातार हंगामा जारी है। एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट जारी होते ही पक्ष और विपक्ष आमने—सामने आ गया है। असम में 40 लाख लोगों को देश का नागरिक नहीं माना गया। इसको लेकर असली और नकली का मुद्दा शुरू हो गया है। विपक्ष ने जहां सरकार के सिर पर नागरिकता को लेकर ठीकरा फोड़ा, वहीं सरकार ने इस मुद्दे को लेकर विपक्ष पर वोट बैंक की राजनीति का आरोप लगाया।
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संसद में भी एनआरसी का मुद्दा तूल पकड़ा और सदन को स्थगित करना पड़ा। असम में रह रहे जिन लोगों के नाम इस लिस्ट में नहीं हैं, उन्हें लेकर पक्ष और विपक्ष अलग—अलग बयान दे रहे हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी के एक सांसद ने तो ऐसे लोगों को देश से बाहर निकालने और न जाने पर गोली मारने तक की बात कह दी, वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने सरकार से पूछा कि जिन लोगों के पास दस्तावेज नहीं है, तो क्या उन्हें बाहर निकाल दोगे, तो वहीं ममता बनर्जी ने सरकार को चेतावनी दी कि वह असम जाएंगी और उन्हें रोक सकते हो, तो रोक लो।
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एनआरसी को लेकर हो रही पक्ष—विपक्ष की इस राजनीति के बीच सब उन नागरिकों को भूल ही गए, जिनके नाम लिस्ट में नहीं है? जानकारी के अनुसार, लिस्ट में पूर्व राष्ट्रपति फरुखुद्दीन अली अहमद के परिवार वालों के नाम भी नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या पूर्व राष्ट्रपति का परिवार भारतीय नहीं है। वह देश के राष्ट्रपति रहे, अगर वह भारतीय नहीं, तो देश के सर्वोच्च पद पर कैसे पहुंच गए? कैसे देश के प्रथम नागरिक बन गए? सवाल ये भी है कि जिनके नाम लिस्ट में नहीं है आखिर उनका क्या होगा? वे कहां जाएंगे? क्या इन्हें देश की सीमा से खदेड़ दिया जाएगा या फिर केवल चुनाव तक ही ये हंगामा जारी रहेगा?
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