नूह हिंसा: दंगाइयों ने महिला जज को भी नहीं छोड़ा, 3 वर्षीय बेटी के साथ भागकर न्यायमूर्ति ने बचाई जान

नूह हिंसा: दंगाइयों ने महिला जज को भी नहीं छोड़ा, 3 वर्षीय बेटी के साथ भागकर न्यायमूर्ति ने बचाई जान
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चंडीगढ़: हरियाणा के नूंह में विश्व हिन्दू परिषद (VHP) की ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा पर हमले के दौरान भीड़ ने नूंह की एक एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (SJM) की गाड़ी पर हमला (Truth of Mewat Violence) कर उसे आग के हवाले कर दिया था। हालांकि, इस हमले में जज और उनकी 3 वर्षीय मासूम बच्ची बाल-बाल बच गईं। एक FIR से इस बात का खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार, नूंह शहर थाने में मंगलवार को दर्ज की गई एक FIR में बताया गया है कि SGM अंजलि जैन की गाड़ी पर सोमवार को हमलावरों ने पथराव और फायरिंग की, जिसके चलते उन्हें और उनकी बेटी को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। जज, उनकी बेटी और कर्मचारियों को नूंह (Truth of Mewat Violence) के पुराने बस स्टैंड की एक वर्कशॉप में पनाह लेनी पड़ी, जिन्हें बाद में कुछ वकीलों ने बचाया। नूंह SGM की अदालत में प्रोसेसर सर्वर (कानूनी कारवाई में मौजूद पक्षों को कानूनी कागजात देने वाला व्यक्ति) के रूप में काम करने वाले टेकचंद की शिकायत पर अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है।

FIR के अनुसार, सोमवार दोपहर लगभग एक बजे SGM, उनकी 3 वर्षीय बेटी और गनमैन सियाराम अपनी फॉक्सवैगन कार से दवा खरीदने नलहर स्थित SKM मेडिकल कॉलेज गई थीं। दोपहर लगभग 2 बजे जब वे मेडिकल कॉलेज से लौट रही थीं, तो दिल्ली-अलवर रोड पर पुराने बस स्टैंड के पास लगभग 100-150 दंगाइयों ने उन पर एकसाथ धावा बोल दिया। FIR में कहा गया है कि, 'दंगाई उन पर पत्थरबाज़ी कर रहे थे। कुछ पत्थर कार के पीछे वाले शीशे पर लगे और दंगाइयों ने इलाके में फायरिंग भी की। हम चारों कार सड़क पर छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए भागे। हम पुराने बस स्टैंड की एक वर्कशॉप में जाकर छिप गए और बाद में कुछ वकीलों ने हमें बचाया। अगले दिन, जब मैं कार देखने गया, तो मुझे पता चला कि दंगाइयों (Truth of Mewat Violence) ने हमारी कार को जला दिया था।' 

पुलिस ने IPC की धारा 148 (दंगा), 149 (गैरकानूनी सभा), 435 (नुकसान पहुंचाने के मकसद से आग लगाना), 307 (हत्या की कोशिश) और शस्त्र अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

नूंह में क्यों फैली हिंसा:-

बता दें कि, हरियाणा के नूंह (Truth of Mewat Violence)​ में हिंदू संगठनों ने प्रति वर्ष की तरह इस बार भी 31 जुलाई को बृजमंडल यात्रा निकालने की घोषणा की थी। इसके लिए बाकायदा प्रशासन से इजाजत भी ली गई थी। सोमवार (31 जून) को बृजमंडल यात्रा के दौरान इस पर कट्टरपंथियों की भीड़ ने पथराव हो गया था। जिसके आबाद दंगाइयों ने सैकड़ों कारों को आग लगा दी, यहां तक कि साइबर थाने पर भी हमला किया गया और फायरिंग भी हुई। वहीं, सावन सोमवार को प्राचीन शिव मंदिर पहुंचे सैकड़ों लोगों को बंधक बनाया गया। पुलिस की दखल के बाद लोगों को वहां से रेस्क्यू किया गया। पुलिस पर भी हमला हुआ। नूंह के बाद सोहना में भी पथराव और गोलीबारी हुई। वाहनों को आग लगा दी। बता दें कि, हरियाणा का नूह (Truth of Mewat Violence) मुस्लिम बहुल इलाका है, जहां 80 फीसद मुस्लिमों की आबादी है, दिल्ली के लगभग 100 किमी दूर यह जिला अति पिछड़ा जिला माना जाता है, साथ ही यह साइबर अपराधों का गढ़ भी है। यही वो इलाका है, जहाँ एक DSP सुरेंद्र सिंह को ट्रक से कुचलकर मार डाला गया था।   

एक रिपोर्ट के अनुसार, नूह के कट्टरपंथियों ने भिवानी हत्याकांड में आरोपित मोनू मानेसर पर हमला करने की साजिश रची थी। हालाँकि, माहौल न बिगड़े, इसलिए खुद VHP ने मोनू मानेसर को यात्रा में आने से मना कर दिया। हज़ारों की संख्या में महिलाएं, बच्चे इस यात्रा में शामिल थे, जो सावन सोमवार को शिव मंदिर पर जल चढ़ाने जा रही थी, यहाँ तक की महिला जज पर भी हमला किया गया। हालाँकि, मोनू के न आने के बावजूद कट्टरपंथियों द्वारा दहशत फैलाने के लिए जलाभिषेक यात्रा (Truth of Mewat Violence) पर हमला किया गया। इस हिंसा में छह लोगों की जान चली गई। पुलिस अब तक करीब 116 लोगों को अरेस्ट कर चुकी है। 

दिल्ली से बंगाल तक, दंगों का एक ही पैटर्न:-

बता दें कि, यह पहली बार नहीं है, जब कट्टरपंथियों ने धार्मिक जुलुस को अपनी नफरत का निशाना बनाया हो। दिल्ली, जहांगीरपुरी, बंगाल में रामनवमी यात्राओं पर हमले हम देख ही चुके हैं। 2020 के दिल्ली दंगो के दौरान भी 53 लोगों की मौत हुई थी, वामपंथी मीडिया ने दंगाइयों को बचाने के लिए कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर पर दंगे भड़काने के आरोप मढ़े थे। लेकिन, जब कोर्ट में मामला चला, तो आम आदमी पार्टी (AAP) का तत्कालीन पार्षद ताहिर हुसैन पूरे दंगे का मास्टरमाइंड निकला। जिसने कोर्ट में कबूल किया कि, दंगाइयों का मकसद केवल और केवल हिन्दुओं को सबक सिखाना और उन्हें मारना ही था। इसी ताहिर हुसैन को बचाने के लिए वामपंथी मीडिया गिरोह ने कई नैरेटिव चलाए थे। यह भी गौर करने वाली बात है कि, हाल ही में देश में कई जगहों पर मुहर्रम का जुलुस भी निकला, लेकिन कहीं से भी इस तरह की हिंसा की खबर नहीं आई, उनपर कोई हमला नहीं हुआ। वहीं, बंगाल में जब रामनवमी पर पुलिस द्वारा तय किए गए रुट से शोभायात्रा निकाली गई, तब भी मुस्लिम बहुल इलाके में शोभायात्रा पर हमला हुआ था। बाद में कट्टरपंथियों ने खुद को विक्टिम बताते हुए आरोप लगा दिया कि, रैली में भड़काऊ नारे लगाए गए थे, जिसके कारण हिंसा हुई। अब ये सोचने वाली बात है कि, वो भड़काऊ नारे, रैली के साथ चल रही पुलिस को सुनाई नहीं दिए, केवल कट्टरपंथियों को सुनाई दिए और उन्होंने घरों की छतों से पत्थर और कांच की बोतलें फेंकना शुरू कर दी।

कोलकाता हाई कोर्ट तक इस हिंसा की सुनवाई करते हुए कह चुका है कि, हिंसा की तैयारी पहले से कर ली गई थी और छतों पर पत्थर, बोतलें जमा कर लिए गए थे। वहीं, जब कोलकाता हाई कोर्ट ने हिंसा की जांच NIA को सौंपी, तो बंगाल पुलिस ने जाँच एजेंसी को दस्तावेज़ ही नहीं सौंपे। सीएम ममता का कहना था कि, यात्रा मुस्लिम इलाके में घुसी इसलिए हिंसा हुई। जबकि, यात्रा का रुट तो बंगाल पुलिस ने ही तय किया था, उसी रास्ते से यात्रा निकली। लेकिन, उस हिंसा में भी दंगाइयों पर कार्रवाई नहीं हुई और दोष उल्टा यात्रा निकालने वालों पर ही मढ़ दिया गया, मेवात (Truth of Mewat Violence) में भी यही किया जा रहा है। 

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