पूरे ओडिशा में हर वर्ष 1 अप्रैल को उत्कल दिवस या ओडिशा दिवस सेलिब्रेट किया जाता है। साल 1936 में 1 अप्रैल को देश के प्रथम भाषा आधारित राज्य के तौर पर उत्कल प्रांत का गठन किया गया था। जिसका अंग्रेजी में नाम ओरिशा (ओडिशा) था। स्वतंत्र उत्कल प्रांत बनाने में उत्कल गौरव मधुसूदन दास, उत्कलमणि गोपबंधु दास, महाराज कृष्ण चंद्र गजपति, भक्तकवि मधुसूदन राव, पंडित नीलकंठ दास, व्यास कवि फकीर मोहन सेनापति, गंगाधर मेहेर एवं कवि राधानाथ राय ने अतुलनीय भूमिका को अदा किया।
खबरों का कहना है कि उत्कल गौरव मधुसूदन दास ने वर्ष 1903 में ओडिआ भाषा की सुरक्षा एवं राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य लेकर उत्कल सम्मेलनी का गठन कर लिया था। जिसके उपरांत सम्मेलनी के सदस्यों को ओडिआ भाषा के प्रति जागृत करने में जुट गए और भाषा के आधार पर उत्कल प्रांत के गठन की मांग को और भी तेज कर दिया है। जिसमे पूरे प्रांत से लोगों का समर्थन मिलता हुआ नज़र आ यह है। 1920 में उत्कल सम्मेलनी की ओर से कांग्रेस अधिवेशन में ओडिआ को भाषा आधारित एक राज्य बनाने का प्रस्ताव भी पेश कर दिया था। इस प्रस्ताव पर एक अप्रैल 1936 को मुहर लग गई और ओडिशा एक स्वतंत्र भाषा आधारित राज्य घोषित किया जा चुका है। जिसके पूर्व ओडिशा, बंगाल एवं बिहार का भाग हुआ करता था। ओडिशा को 1936 में भाषा आधारित स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिला, जबकि 1950 में भारत की आजादी के उपरांत ओडिशा देश का स्वतंत्र राज्य बना। ओडिशा को 4 नवंबर 2011 को बदलकर ओडिशा किया जा चुका है।
उत्कल प्रांत की विशेषता: उत्कल प्रांत का गठन होने के उपरांत से ओरिशा (ओडिशा) अपनी समृद्ध भाषा, साहित्य, कला व संस्कृति तथा विशेष खाद्य व्यंजन व पेय सहित अन्य क्षेत्रों में आज पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने में भी कामयाब हो गया। उत्कल प्रदेश मंदिर, कलाकृति, ओडिशी नृत्य जैसी कला, संगीत संस्कृति को लेकर अपना विशेष स्थान रखने में कामयाब है। चाहे वह चारों धाम से एक धाम श्रीजगन्नाथ धाम हो, चाहे राजधानी भुवनेश्वर में मौजूद महाप्रभु श्री लिंगराज मंदिर, धौली स्तूप, खंडगिरी उदयगिरी गुफा जैसी ऐतिहासिक धरोहरों वाला ओडिशा आज न सिर्फ इंडिया की बल्कि पूरी दुनिया में पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र के रूप में पहचान बना चुका है।
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