नई दिल्ली: भारत ने OHCHR के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और दो अन्य की गिरफ्तारी की आलोचना को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि अधिकारियों ने स्थापित न्यायिक प्रक्रियाओं के अनुरूप कार्य किया था। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार एजेंसी ने मंगलवार को एक ट्वीट करते हुए तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व पुलिस अधिकारियों आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट की गिरफ्तारी पर चिंता प्रकट की थी और उनकी फ़ौरन रिहाई की मांग की थी।
इस ट्वीट पर जवाब देते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि OHCHR की टिप्पणियां "पूरी तरह से अनुचित" थीं। उन्होंने लिखा कि, हमने तीस्ता सीतलवाड़ और दो अन्य लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई के संबंध में मानवाधिकार के लिए उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) द्वारा एक टिप्पणी देखी है। बागची ने कहा कि, OHCHR की टिप्पणी पूर्णतः अनुचित है और भारत की स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली में हस्तक्षेप का गठन करती है। भारत में प्राधिकरण स्थापित न्यायिक प्रक्रियाओं के मुताबिक, कानून के उल्लंघन के विरुद्ध सख्ती से काम किया जाता है। इस प्रकार की कानूनी कार्रवाइयों को सक्रियता के लिए उत्पीड़न के तौर पर लेबल करना भ्रामक और अस्वीकार्य है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार एजेंसी ने अपने ट्वीट में कहा था कि, हम तीस्ता सीतलवाड़ और दो पूर्व पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी और हिरासत से काफी चिंतित हैं और उनकी फ़ौरन रिहाई की मांग करते हैं। 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों के साथ उनकी सक्रियता और एकजुटता के लिए उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए। बता दें कि, गुजरात दंगों से जुडी जकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत की सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, तीस्ता के खिलाफ जांच की जरूरत है, जिसके बाद उन्हें हिरासत में लिया गया था। साथ ही तीस्ता के एक साथी रईस खान ने भी कहा था कि, तीस्ता ने गुजरात दंगा पीड़ितों के नाम पर करोड़ों का फंड जुटाया और खुद खा गई। अब सवाल यह उठता है कि, बिना पूरे मामले को समझे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार, तीस्ता सीतलवाड़ का बचाव क्यों कर रहा है ?
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