तो इसलिए कहा जाता है 'दूसरों के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाना'

तो इसलिए कहा जाता है 'दूसरों के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाना'
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वो कहावत आपने सुनी होगी, 'दूसरों के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाना'. इसका मतलब सिर्फ एक कहावत के तौर पर ही निकालते थे हम। लेकिन ये कहावत अब सच भी साबित हुई है।

दरअसल, सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिसमे एक बड़ी सी बन्दूक है जिसे किसी और के कंधे पर रख कर चलाया जा रहा है। यानि ये इतनी बड़ी है कि शायद किसी एक इंसान से चल पाए। आप देख सकते हैं कि एक व्यक्ति ने बदूंक को कंधे पर रखा हुआ है जबकि दूसरा उसका ट्रिगर दबा रहा है। ये फोटो काफी पुरानी है जो विदेशी भी दिख रही है। लेकिन ऐसी ही बदूक भारत में भी मौजूद है जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।

बता दे कि ये बन्दूक हनुमानगढ़ जिले के संगरिया कस्बे में ग्रामोत्थान विद्यापीठ परिसर स्थित सर छोटूराम कलात्मक संग्रहालय में कुछ इसी तरह की बंदूकें हैं जो दूसरे के कंधो पर रख कर चलाई जाती है। इन्हे देखकर आप ये कह सकते हैं कि ये सैकड़ों साल पुरानी बन्दूक है जो सिर्फ चार ही हैं।

इनके बारे में बताया जा रहा है कि ये इन बंदूकों की लंबाई अधिक होने के कारण युद्ध के दौरान इनको ईंटों व मिट्टी के बने ढांचे या स्वरूप के ऊपर रख कर चलाया जाता था। इनको लम-छड़ बंदूक भी कहा जाता था। इसमें एक बंदूक 12 फीट, एक साढ़े 11 फीट व दो दस-दस फीट के करीब है। और इंक वजन भी कुछ 25 से 35 किलाग्राम रहा होगा।

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