नई दिल्ली : कश्मीर में हुर्रियत और उसके पाकिस्तान में बैठे आकाओं की फंडिंग का मुद्दा इन दिनों बेहद गर्म है. पिछले दिनों एक चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में हुर्रियत नेताओं के खुलासे के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने एक और जांच शुरू कर दी है.
बता दें कि हुर्रियत को फंडिंग को लेकर हाल ही में हुई घटनाओं से यह संकेत मिला है कि 1990 के दशक के खूंखार आतंकवादी अब एक नई भूमिका में वापसी कर रहे हैं. वैसे इसकी शुरुआत 2011 में ही हो गई थी, जब NIA ने अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के कानूनी सलाहकार गुलाम मोहम्मद बट को गिरफ्तार किया था. बट ने उस समय अपना संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत शुरू किया था. 2010 में भी कश्मीर में विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी खूब हुई थी ,जिससे घाटी का जीवन लम्बे समय तक अस्त-व्यस्त रहा था. तब पता चला था कि बट को 2009 से जनवरी 2011 के बीच पाकिस्तान में अपने सूत्रों से दो करोड़ रुपये हवाला के जरिए मिले थे. इस मामले में सुनवाई अभी भी जारी है.
अब खबर है कि 1990 के दशक में हिज्बुल मुजाहिदीन और अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़कर आतंकवाद फैलाने वाले बहुत से लोग अब कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के लिए फंडिंग मुहैया कराने वाले नेटवर्क का हिस्सा बन गए हैं. इसी कारण कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं बढ़ गई है, क्योंकि इन पत्थरबाजों को इस काम के लिए पर्याप्त रुपए मिल रहे हैं.
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