श्रीनगर: जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला के सुर काफी बदल गए हैं। चुनाव नतीजों के पहले वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और केंद्र सरकार के खिलाफ थे, लेकिन नतीजे आने के बाद उन्होंने सहयोग की बातें करनी शुरू कर दी हैं। चुनाव के बाद उन्होंने कहा कि वह केंद्र के साथ टकराव नहीं चाहते और हाल ही में डिप्टी स्पीकर का पद बीजेपी को सौंप दिया है।
इस कदम को कुछ लोग दोस्ती का संकेत मान रहे हैं, जबकि जानकार इसे ज्यादा सतर्कता से देखने की सलाह दे रहे हैं। उनका मानना है कि उमर अब्दुल्ला टकराव से बचना चाहते हैं और जम्मू कश्मीर की जनता की बेहतरी के लिए सभी के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। हालिया चुनाव में महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने केवल तीन सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी के साथ गठबंधन के खतरों का अनुभव करके अब्दुल्ला परिवार ने चुनाव से पहले ही कांग्रेस के साथ गठबंधन कर इस नैरेटिव को उलटने में सफलता पाई।
उमर अब्दुल्ला का ध्यान अब भविष्य की राजनीति पर है। वह अनुच्छेद 370 को जीवित रखने के मुद्दे को उठाते रहना चाहते हैं ताकि अगले चुनाव में उन्हें इसके बारे में सवालों का सामना न करना पड़े। साथ ही, वे जम्मू कश्मीर के विकास के लिए केंद्र के साथ तालमेल को जरूरी मानते हैं। उमर की सरकार को 55 विधायकों का समर्थन है, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के 42 विधायक शामिल हैं। उन्होंने डिप्टी स्पीकर पद बीजेपी को देने का निर्णय किया, जो उनकी स्वतंत्रता को दर्शाता है कि वह सहयोगियों के दबाव में नहीं आना चाहते।
उमर अब्दुल्ला ने अपनी सरकार में चार मंत्री पद रिक्त रखे हैं, ताकि यदि कांग्रेस बाहर जाती है तो यह धारणा न बने कि नेशनल कॉन्फ्रेंस बीजेपी के करीब जा रही है। अंत में, उमर अब्दुल्ला का यह कदम भविष्य में केंद्र के साथ टकराव की स्थिति में बीजेपी को जिम्मेदार ठहराने के लिए एक रणनीतिक चाल भी हो सकता है। इस तरह, वह अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं।
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